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________________ ર ग्रासावयास पचिदियसरीरे अद्दीनपचेन्द्रियशरीरः=मतिपूर्णसमेंन्द्रिशरीरः, 'मसोचिए ' मांसोपचितः = मासैरुपचित, पुष्टशरीर इत्यर्थः पुनः बालवीलावण कुसले ' बालक्रीडनकुशलथापि आसीत् । तव खलु स दासचेट' शुशुमाया दारिकायाः 'बालग्गा हे' बालग्राहः यो हि बालक्रीडयितु नियुक्तो भृत्यः स 'बालग्राहः इत्युच्यते जावयाप्यभवत् । सहि चिलातः सुमां दारिया वटयां गृहावि, गृहीत्वा बहुभिर्दाथ दारिकामिय पाउपालिकामिश्र, डिम्मकेष डिम्मिकामिश्र कुमारथ कुमारियाभित्र सार्द्धम् दारकभिनयकुमाराणां अल्प, बहु, बहुतर कालकृत मेदो विज्ञेयः, अभिरममाणः २ = पुनः पुनः क्रीडन् विहरति । ततः खलु स चिलातो दामचेट' तेपां बहूनां ' दाराण जात्र ' दार_काणा यात्= दारकाणा दारिकाणा डिम्भराना डिम्भिकाना कुमाराणां कुमारिकाणां का नोम चिलात था । जो प्रमाणोपेत पाचों इन्द्रियों से परिपूर्ण शरीर वाला था । मासोपचित था पुष्ट देहवाला था । यह पालकों को खिलाने में विशेष कुशल था । (तएण से चिलाए दासचेडे सुसुमाए दारियाए बालग्गाहे जाए याचि होत्या सुसुमदारियं कडीए गिण्ट, गिव्हित्ता यहहिं दारएहिं य दारियाहि य विरह-तेसिं पण दारियाण य जान अप्पेगइयाण खुट्टए अवहरड, एवं वद्दए आडोलियाओ ते दुरुए पोतुल्लए साडोल्लए, अप्पेगइयाण आभरणमल्लाल्कार अवहरई, अप्पेगइयाए आउस्सह, एव अवहरह, निच्छोडेर, निम्भच्छे तज्जेइ अप्पेगइए ताह ) इसलिये वह दासचेट सुसमा दारिका के खिलाने के लिये नियुक्त हो गया । अतः वह चिलान दास चेटक सुसमादारिका को गोदी में लेकर अनेक दारक दारिकाओं के साथ बालक बालि काओं के साथ son डिभिकों के साथ और कुमार कुमारिकों • નામ ચિલાત હતુ તે સપ્રમાણ પાચે ઇન્દ્રિયાથી પરિપૂર્ણ શરીરવાળા હતા તે માસલ તેમજ પુષ્ટ શરીરવાળા હતા તે માળકાને રમાડવામા સવિશેષચતુર હતા (तरण से चिलाए दास चेडे सुसुमाए दारियाए बालग्गाहे जाए यानि होत्था सुसुम दारिय कूडीए गिदड़, गिव्हित्ता बहूहिं, दारएहि य दारियाहि य विरइ तेर्सि बहूण दारियाण य जाव अप्पेगइयाण खुल्लए अवहर, एन वह आडो याओ तेंदुए पोतुल्लए, साडोल्लए, अप्पेगइयाण आभरण मल्लाल्कार अवहर, अप्पेगइए, आउस्सइ, एव अवहसर, निच्छेडेर, निव्भच्छे, तज्जेइ, अप्पेगइए ताले) તેથી તે દાસચેર સુસમા દ્વારિકાને રમાડવા માટે નિયુક્ત કરવામા આન્યા આ પ્રમાણે તે ચિલાત દાસ ચેરક સમા દારિકાને ખેાળામા બેસા ઢીને ઘણા દ્વારક ક્રારિકાઓની સાથે ખાળક તેમજ ખાળાએાની 1
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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