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________________ ६२४ ANपा जलि कसा 'पद्वाति' पर्वयत्ति नपरिजयशदेनाभिनन्दन्ति, वर्दपिस्या तान् अधान रामः समीपे ' उति ' उपनयनि । गतः न्यलु स कनाकेनू राजा तेपा सयाप्रनौशापाणिनगनाम् ' उस्का 'उगुलाम्प म्य केनापि फरो न ग्राह्य ' त्याम्पमाशाप तिरविन्ददाति. तिीर्य सत्करोति-मधुर वचनादिभि., समानपति-नादिमि , सत्कार्य सम्मान्य प्रतिषिसर्नयति । ततः खलु स कनककेन राना 'आसमाए' अधमर्दकान्-अश्वशिक्षकान् शन्दयति, शब्दयिथा एमादीत्-यूय खलु हे देवानुमियाः ! ममाधान 'त्रिण एह ' पिनयत शिक्षयत-गत्यादिकाशमान फुरुतेत्पर्य । ततः खलु तेऽन मर्दकाः 'तहत्ति तथेति 'तथास्तु' इत्युक्त्वा मतिशृण्वन्नि नृपाशा स्वीकृर्वन्ति, जहा कनककेतु राजा थे। यहा जाकर उन्होंने पहिले दोनों राय जोड कर राजा कनककेतु को नमस्कार किया-जय विजय शन्दों द्वारा उन्ह घधाई दी-पगई देकर पाद में उन घोहों को उनके समक्ष उपस्थित करदिया इसके पाद पनककेतु राजा ने उन सांयाधिक पोतवणिकजना के लिये निःशुल्क (फररहित ) अपस्था वितरित की इन्हों से कोई भी राज्यकर्मचारी टेक्स न ले इस प्रकार का आज्ञापत्र उन्हे लिखकर दे दिया। आज्ञापत्र लिखकर देने के बाद राजाने उनका मधुर वचना द्वारा सत्कार किया। वस्त्रादि प्रदान पूर्वक उनका सम्मान किया। फिर सत्कार म मान करके उन्हें विसर्जित कर दिया। (तएण से कणक कोडयियपुरिसे सहावेड, सहावित्ता सकारेति पडिविसज्जेइ, तरण से कणगके करारा आसमहरा सदावेद सद्दावित्ता एव वयासी तुम्भण देवानुप्पिया ! मम आसे विणए ) इस के बाद क्नककेतु राजाने का કનક તુને નમસ્કાર કર્યા અને જય-વિજય શબ્દ વડે તેમને વધામણી આપી વધામણી આપીને તેમણે તે બધા ઘડાઓને તેમની સામે ઉપસ્થિત ફયા ત્યારપછી કનકકેતુ રાજાએ તે સાયાત્રિક પિતરણિ કોને માટે કર માફી કરી આપી તેમની પાસેથી કઈ પણ રાજ્ય કર્મચારી કર (ટેકસ) લે નહિ ? આજ્ઞાપત્ર તેમને લખી આપ્યું આજ્ઞાપત્ર આપીને રાજાએ તેમને મધુર વચને વડે સત્કાર કર્યો અને વસ્ત્રો વગેરે આપીને તેમનું સન્માન કર્યું ત્યારપછી તેમને વિદાય કર્યા (तरण से कणगऊ कोडुपियपुरिसे सहावेइ, सदावित्ता सरकारे ति° पडिविसज्जेह, तरण से कणगऊ राया आसमदए सगवेइ सदाविता " वयासी तुध्मण देवाणुप्पिया ! मम आसे विणएह ।
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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