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________________ - - - - - - - ५६४ । माताधर्मकथा कुमार रज्जे ठावेमो तओ पच्छा देवाणुप्पिया! अतिप मुडे भवित्ता जाव पव्वयामो, अहासुहं देवाणुप्पिया, तएणं ते पंच पंडवा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता दोवइ देवि सदावेति सदावित्ता एवं वयासी एवं खल्ल देवाणुप्पिया । अम्हेहि थेराणं अंतिए धम्मे णिसंते जाव पव्वयामो तुम देवाणुप्पिए ! कि करेसि ?, तएण सा दोवई देवी ते पंच पडवे एव वयासी-जइणं तुम्भे देवाणुपिया । ससारभउव्विग्गा पव्वयह मम के अपणे आलवे वा जाव भविस्सइ १, अहपि य णं संसारभउविग्गा देवाणुप्पिएहि सद्धिं पवइस्सामि, तएण ते पच पडवा पडुसेणस्स अभिसेओ राया जाए जाव रज्जे पसाहेमाणे विहरइ, तएण ते पच पडवा दोबई य देवी अन्नया कयाइ पडुसेणं. रायाण आपुच्छति, तएण से पडुसेण रायाकोडुवियपुरिसे सदावेइ सदावित्ता एव वयासी-खिप्पामेव भो । देवाणुप्पिया। निक्खमणाभिसेय जाव उवटवेह पुरिससहस्सवाहिणीओ सिवियाओ जाव पच्चोरुहति पच्चोरुहिता जेणेव थेरा तेणेव० आलित्तेणं जाव समणा जाया चोदस्त पुवाइ अहिज्जंति अहिज्जित्ता वहणि वासाणि छट्टमदसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि अप्पाण भावेमाणा । ॥ .
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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