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________________ १५८ धर्मकणार मदृष्ट्या एकेन पाहुना रस मारग मसारथि गृहीत्या, एकन गाना गहामहानदी मुनीर्य, समागत. । 'नार या fraा न पुन्झर' नगर काय चिन्ता न पुभ्यते नार-विशेषस्तु हे तात ! नौशया सगोपिताया सस्या हणः केनोपायेन गङ्गामहानदी तरिग्यति इति चिनाऽस्माभिन बुध्यते-न क्रियतेस्म, अनेनापरा धेन 'जार अम्दे णिधिसए आणइ 'या-रवारपागार निविषयान् आशापयति । ततस्तदनन्तर रा पा राना तान पनपाण्याने गमवादी'दुग' दुष्टु-अशोमन पल हे पुत्राः । एत युग्माभिः कृष्णस्ग वामदेवस्य विप्पिय ' पिप्रियम्-मनिष्टर कुतिः , वव सलु स पाण्ट्र राजा कुन्ती देवी शब्दयति, शदयित्वा, एमवादीन-गन्छ मलु व हे देवानुप्रिये ! द्वारवती दठुण तचेव सब-नयर कण्हस्म चिंता न जुन्नति जान अम्हे णिन्वि सये आणवेह) बाद में कृष्ण वासुदेव लवणननुहाधिपति सुस्थित देव से मिलकर ज्यो ही गगा महानदी के तट पर आये-तो उन्हें वह नौका नही मिली-इस कारण ये १ एक हाथ से तुरग एप सारथि युक्त रथ को दूसरे हाथ से गगा महानदी को तैर कर जहा हमलोग थे-वहा आ गये। “कृष्णजी किस तरह गगा महानदी को पार करेंगे" यह विचार रमयोगो ने नौका को छिपाते समय नहीं किया। इसी अपराध से उन्हों ने हमारे रथों को चकना चूर कर देश से बाहिर निकल जाने के लिये आज्ञा दी है। (तगण से पटुराया ते पच पडवा एव वयासीदुटुण पुत्ता ! कय कण्रस्त चासुदेवस्स विप्पियं करेमाणेटिं-तएण से पडुराया फोनि देवि सदावेद सहाविता एव बयासी-गच्छद ण तुम लवणाहिबइ ठुण त चेत्र सब-नगर कण्डस चित्ता न जुन्नति जाव अम्हे णिव्विसये आणइ) त्यारपछी वासुदेव वन समुद्र मधिपति सुस्थित દેવને મળીને જ્યારે ગગા મહાનદીના કિનારા ઉપર આવ્યા ત્યારે તેમને નૌકા જડી નહિ ત્યારે તેઓ એક હાથમાં ઘોડા અને સારથિ સહિત રથને ઉચ કીને બીજા હારથી ગગા મહાનદીને તરીને જવા અમે હતા ત્યાં આવી ગયા “કૃષ્ણવાસુદેવ કેવી રીતે ગગા મહાનદીને પાર કરશે” નૌકાને છુપાવતા અમે આ વિષે વિચાર જ કર્યો નહોતે આ અપરાધથી તેમણે અમારા રથોને નષ્ટ કરી નાખ્યા અને અમને દેશની બહાર જતા રહેવાની આજ્ઞા કરી છે. (तएण से पडुराया ते पच पडवे एच वयासी-दुण पुत्ता । कय कण्डहस्स वासुदेवस्स विप्पिय करेमाणेहि-तएण से पड्डुराया कोतिं देवि - 'वेइ, सदा
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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