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________________ मनगारधर्मामृतपिणी टो० अ० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम् जेणेव महाणई तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता एगडियाए मग्गणगवेसण त चैव जाव णूमेमो तुव्भे पडिवालेमाणा चिट्ठामो तण से कहे वासुदेवे तेसि पंचण्हं पांडवाणं एयभट्ट सोच्चा णिसम्म आसुरुते जाव तिवलियं एव वयासी- अहो णं जया म लवणसमुहं दुवे जोयणसयसहस्सा विच्छिण्ण वोइवइत्ता पउमणाभ हयमहिय जाव पडिसेहित्ता अमरकका संभग्ग० दोवई साहत्थि उवणीया तया ण तुम्भेहि मम महत्पं ण विष्णायं इयाणि जाणिस्सहत्तिकद्दु लोहदंडं परामुसइ, पंचण्हं पंडवाण रहे चूरे चूरिता निव्विस आणवेइ आणवित्ता तत्थ ण रह मद्दणे णाम कोडे णिचिट्टे, तएण से कण्हे वासुदेवे जेणेव सए खधावारे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छिता सएणं खधावारेणं सद्धि अभिसमन्नागए यावि होत्था, तएण से कण्हे वासुदेवे जेणेव चारवई पायरी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अणुपविसइ ॥ सू०३१॥ ५४५ टीका -- तएण से इत्यादि । ततस्तदनन्तर खलु स कृष्णो वासुदेवो लण समुद्रस्य मध्यमध्येन व्यतित्रजति गच्छति व्यतित्रज्य तान् पञ्च पाण्डवान् एव मवादीत - गच्छत खलु यूय हे देवानुमिया " गङ्गामहानदीमुत्तरत= उत्तीर्णा भवत, तएण से कहे वासुदेवे इत्यादि । टीकार्थ - (तरण) इसके याद (से कण्हे वासुदेवे ) उन कृष्णवासुदेवने ( लवणसमुद्द) जय लवण समुद्र में (मज्झ मझेण वीइवयइ ) बीच से होकर वे चले जा रहे थे । (ते पच पडवे एव व्यासी) तय पाच पाडव से ऐसा कहा - (गच्छहण तुग्भे देवाणुप्पिया ! गंगामहानइ उत्तरह जाव तरण से कष्णे वासुदेवे इत्यादि टीडार्थ- (तएण त्यारपछी (से कण्छे वासुदेवे) ते वासुदेवे (लवणसमुद्द) है न्यारे तेथे सवधु समुद्रनी ( मज्झ मज्झेण बोधवयइ ) वश्ये थाने पसार यता इता त्यारे ( ते पच पडवे एव वयासी) पाये पाडवाने भा प्रभा ( गच्छहण उभे देवाणुलिया ! गंगा महानदिं वत्तर जाव ताव अह सुट्टिय
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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