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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम् वासुदेवस्स दोवई, एसणं अहं सयमेव जुज्झसज्जो णिग्गच्छामि तिक दास्यं सारहि एव वयासी केवलं भो । रायसत्थेसु दूये अवझे तिकट्टु असक्काfरय असम्माणिय अवद्दारेणं णिच्छुभावह, तरणं से दारुए सारही पउमणाभेणं असक्कारिय जाव पिच्छूढे समाणे जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छद्द उवागच्छित्ता करयल० कण्हं जाब एव वयासी एवं खलु अह सामी । तुम्भ चयणेण जाव णिच्छुभावेइ || सू० २८ ॥ टीका- 'तरण से ' इत्यादि । ततः खलु स कृष्णो वासुदेवः कौटुम्बिकपुरुपान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत् गच्छत खल यूय हे देवानुप्रिय ' द्वारवतीं नगरीम्, 'एन यथा पाण्डुस्तथा घोषणां गोपयत ' - यथा पाण्डू राजा हस्ति नापुरे घोषणा कारितवान् तद्वदित्यर्थः । तेऽपि कौटुम्बिकपुरुषास्तथैव घोषणा - - तएण से कण्हे वासुदेवे इत्यादि । ४९५ 20 टीकार्य - (तएण ) इसके बाद ( से कण्हे वासुदवे) उन कृष्ण वासुदेव ने (कोपुरिसे सहावेह ) कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया (महावित्ता) बुलाकर (एव वयासी) उन से ऐसा कहा (गच्ह ण तुभे देवाणुप्पिया पारवह) हे देवानुप्रियों । तुम द्वारावती नगर में जाओ ( एव जहा पड्डु तहा घोसण घोसावेति जाव पच्चपिणति पडुस्स जहा ) वहा पांडु राजाकी तरह घोषणा करो-अर्थात् पाडु राजाने जिस प्रकार द्रौपदी की खबर लानेवाले के लिये अर्थ प्रदान का घोषणा अपने कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा हस्तिनापुर नगर में करवाई थी - इसी प्रकार की घोषणा करने के " , तरण से कण्हे वासुदेवे ' छत्याहि रीजर्थ - (तरण) त्यारपछी (से कण्हे वासुदेवे ) ते ऋष्णु वासुदेवे (कोडु बिय पुरिसे सहावेइ ) टु मिड पुरुषाने मोसाच्या ( साविचा) गोसावीने ( एव वयासी) तेभने या प्रभा ज्धु - ( गन्छ ण तुम्भे देवाणुनिया बारपई ) हे देवानुप्रियो ! तभे द्वारवती नगरीमा लगो ( एव जहा पडु तहा घोसण घोसावे ति जाव पञ्चव्विणति पडुरत जहा ) त्या पाडु राजनी प्रेम घोषणा કરી એટલે કે પાડુ રાજાએ જેમ દ્રૌપદીની શેાધ કવા માટેની દ્રવ્ય આપ વાની ઘાષણા હસ્તિનાપુર નગરમા કરાવી હતી તે પ્રમાણે જ વાષણા કરવા
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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