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________________ va देव: कौटुम्बिकपुरुषाणामति पा निशम्य निकन्याठी इजा पदातिपरितो द्वारवत्या नगर्या मध्यमभ्येन यौन कुन्ती देवी तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य तिसन्धात् मत्यवति कृत्या देव्याः पादग्रहण करोति, कला कृत्या देव्या सार्थ दस्तिस्कन्ध दुरुः दूदवि-आरोहतीत्यर्थः । दु द्वारत्या नगर्यो मध्येन कौरव गृहं तत्रोपाग उति उपागत्य स्वक गृहमनूमविशति । # में वासुदेव के लिये इम समाचार की पथर करदी कृष्ण वासुदेव कौड चिक पुरुषों के पास से इस समाचार को सुनकर और उसे हृदय धारण कर हाथी पर पैठ, ध्यगज, रथ एप पदातियो के साथ २ द्वारा वती नगरी के पांच से रोते एए जहाँ कृतीदेवी थी यश आये। (उवा गच्छत्तारविधाओ पच्चोमहह, पच्चोरुरिता कौतीए देवीए पाय ग्गहण करेड, करिता कॉतीय देवीए सद्धि हत्यिखध दुरूङ, दुरुहिता चारचईए यरी मज्झ मज्झेणं जेणेव सहेि तेणेव उवगच्छ कित्ता सय गिद्द अणुपत्रिसह, तरण से पन्हे वासुदेवे कोंतीदेवीं पहाय कथनलिकम्म जिमियत्तत्तरागय जाव सुहासणवरगय एव वासी) वा आकर वे हाथी पर से नीचे उतरे और उतरकर कुती देवी के चरणो में नमन किया-चरण स्पर्श करके कृतीदेवी के साथ २ हाथी पर बैठ गये-पैठ कर के द्वारावती नगरी के ठीक भीतर से होकर जहां अपना गृह-प्रासाद-था वह आप नहा आकर प्रासाद के भीतर દીધી કૃષ્ણવાસુદેવે કૌટુબિક પુરૂષેાની પાસેથી આ સમાચારા સાભળીને તેને હદયમા ધારણ કરાને, હાથી ઉપર સવાર થઈને, ઘેાડા, હાથી, રથ અને પાય દળાની માથે દ્વારાવતી નગરીની વચ્ચે થઈને જ્યા કુતી દેવી હતા ત્યા આવ્યા ( उवागच्छित्ता हत्थिसधाओ पच्चोरुहइ पच्चोरुद्दि कॉवीए देवीए पायग्गण करेइ, करिता फोतोए देवीए सद्धि हथिस दुइ, दुरुहिता बारवईए जयरीए मज्झ मज्झेण जेणेव सए गिहे वेणेव उपागच्छइ, आमन्त्तिा, सय गिद्द अणु पविसइ, वरण से कन्दे वासुदेवे कोंती देवी हाय कपबलिकम्म जिमियत्तु त रागय जाव सिहासनवरगय एव वयासी ) ત્યા પહેંચીને તેએ હાથી ઉપથી નીચે ઉતર્યાં અને ઉતરીને કુંતી દેવીને પગે લાગ્યા અને પગે લાગીને કુ તી દેવીની સાથે હાથી ઉપર સવાર થા સવાર થઇને જમા પૈતાન ભણ A لله
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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