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________________ साधा फच्छुरगनारद सप्ताष्टपटानि प्रत्युतति, नारदाभिमुपमायाति,प्रत्युत्य तिक्खुचो' नि. कृत्वः - निवार, 'आयारिणपयाहिण' आदक्षिणमदक्षिण करोति, कथा वन्दते, नमस्यति गदिया, नत्या, महाग-महतो योग्येन आसनेन उपनिमन्त्र यति । उपवेशनार्य प्रार्थयति । ततः सलु म यच्युटनाग्द. 'उदगपरिफासिया' उदकपरिस्टायां जर स्टेन मिक्तायां 'दमोपरिपत्धुपाए' दोपरिमयास्त तायां कुश पर्याप्तीर्णाया'मिसियाए 'पृप्या आमननिशेपे निपीदति-उपविशति, निपद्य पाण्ड रामान राज्ये यापदन्तः पुरे न कुशलोदन्त-कुगलवार्ता पृच्छति, ततः खलु स पाण्डराजा कुन्ती देवी पाच पाण्डमा, फन्मुल्नारद 'आढति' आद्रियन्ते यावत् पर्युपासते सेवन्ते स्म । तत खलु सा द्रौपदी करछुल्लनारदम् 'असजयभविश्यअपडिहयपच खायपायाम्मे ति । असयतापिरतापतिइता प्रत्याख्यातपापति कन्या, तत्र-अमयतः-वर्तमान कालिकसमापयानुष्ठाननिवृत्तः देवकर (पचहि पउवेरि कुनी देवी मद्धिं आसणाओ अन्भुटेर) ये पाचो पाडवो एच कुन्ती के सार अपने आमन से उठे। (अभुद्वित्ता कन्छुल्लनारय मत्तग्याइ पच्चुग्गच्छह ) और उठकर सात आठ पर फच्छुलनारद के सामने स्वागत निमित्त गये ( पच्चुग्गच्छित्तो तिक्खु त्तो आयाहिणपयाहिण करेइ, करित्ता वदह नमसइ, महरिहेण आस णेण उवणिमतेइ तण्ण से कच्छुल्लनारए उदगपरिफासियाए दभोवार पच्चत्युयाए भिसीयाए णिसीयह, णिसीयित्ता पडराय रज्जे जाव अते उरे य कुसलोदत पुच्छह, तएण से पडराया कोंतीदेवी पचय पडवा कच्छल्लनारय आढति जाय प-जुवासति, तएण सा दोवई कच्छुल्ल नाग्य असजयअविरयअपडिहयपचाखायपावकम्मे त्ति कटु ना आढाइ नो परियाणइ नो अन्भुटेह, नो पज्जुवोसइ) जाकर के इन्हा न अभइ) तसा पाये पायो मन तानी साथ चाताना मासन ५२थी होला यया (अन्मुद्वित्ता कछल्लनारय सत्तट्रपयाइ पच्चुग्गच्छद) मन का થઈને કચ્છડલ નારદના સ્વાગત માટે સાત આઠ ડગલા સામે ગયા (पच्चुग्गन्छित्ता तिक्सुत्तो आयादिणपयाहिण करेइ, करिता वदइ नमसह। महरिहेण आसणेग उवगिमतेइ, तएण से करछल्लनारए उदगपरिफासियाए दमोपरिपच्चत्युयाए भिसियाए णिसीयइ, णिसीयित्ता पडुराय रज्जे जाव अत उरेय कुसलोदत पुच्छइ तएण से पडुराया कौतीदेवी पचय पडवा कच्छुल्लनारय आढति जार, पज्जुबासति, तएण सा दोरई कच्छुल्लनारय असजयअविरयअयाडहयपचक्खायपावकम्मे ति यह नो आदाइ नो परियाणइ नो अमुद्देइ, ना पज्जुवाता)
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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