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________________ यण अणुविस मीतिदान यांच्या ततः वर भाताधर्मकथासो त्यपुरस्य मध्यमभ्यन यात स्व. भानमनुमरियति, तनः बलु छपदो राजा पश्च पाण्डवान् द्रौपदी राजारपन्या पट्टय' पटक-पक्ष्कोपरि 'दुरूहेड 'दूरो इयतिमारोहयति, दोष वेतपतिः पशः ' मज्जा' मजयति-स्नपयति अग्निहोम विवाहविधिनाऽग्नी होम पारयति, पशाना पाण्डमाना द्रौपचान पाणि यहण कारपति, अन पश्चाना पाण्डवानामिति सम्बन्धसामान्ये पप्ठी । ततः खल स पदो राजा पिया गजरकन्याया. इममेनप भीतिदान योतरदान ददाति, मज्न मज्झेण जाच सयभवण अणुपविसह, ताण दुपा राया पच पडवे दोवड रायवरकन्न पय दुख्हेह, दुरहित्ता सेयापी कलसेहि मज्जावेइ, मजारित्ता अगिहोम कारवेइ, पचण्ड पडवाण दोवा य पाणिग्गणं करावेद, ) इसके पाद धृष्टद्युम्नकुमार ने उन पाच पाडवा को पर राजवर कन्या द्रौपदी को चारघटी से युक्त उस अश्वरथ पर बैठाया-बैठाकर छापिल्पपुर नगर के बीच से होता हुआ वह जहा अपना भवन धो यहां आया वहां आकर वह उसमें उन सत्र के साथ प्रविष्ट हुआ। इसके बाद द्रपद राजा ने उन पांचो पांडवों को और राजवर कन्या उस द्रौपदी को एक पट्टक पर बैठा दिया-थैठाकर फिर उसने उनका श्वेत पीत कलशों से चादी सोने के घड़ो से अभिषेक करवाया अभिषेक करवा कर फिर उसने अग्नि होम करवाया-और उसकी मोक्षी पूर्वक पाचो-पाडयो के साथ अपनी कन्यो द्रौपदी का पाणि ग्रहण मस्कार करवा दिया 1 (ताण से दवए राया दोवइए राय पविसइ, तएण दुवए राया पच पड़वे दोघड रापारकन्न पट्टय दुरूहे, दुराहत्ता सेयापीएहिं कलसेहि मज्जावेइ मज्जापिता अग्गिहोम कारवेइ, पचण्ड पडवाण दोवइए य पाणिग्रहण करावेह) ત્યારપછી ધૃષ્ટદ્યુમ્ન કુમારે તે પાચ પાડો અને રાજવર કન્યા કપ દીને ચાર ઘટવાળા તે અશ્વથ ઉપર બેસાડયા અને બેસાડીને કપિ ચપુર નગરની વચ્ચે થઈને જ્યાં પોતાનુ ભવન હતું ત્યાં ગયા ત્યા જઈને તેઓ સર્વે તેમાં પ્રવિણ થયા ત્યારપછી પદ રાજાએ તે પાચે પાડો અને રાજે પર કે તે દ્રૌપદીને એક પક ઉપર બેમાડી દીધા અને બેસાડીને તેણે તેમનો સફેદ, અને પીળા કળશથી-એટલે કે ચાદી અને સેનાના કળશથી અભિષેક કરાવડાવે અભિષેક કરાવીને તેણે અનિહામ કરાવરાવ્યો અને તેની साक्षीमा वातानी न्या स्ता५ तेमानी साथै ४२रावी हीधा । (तएण से १५ इम
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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