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________________ भनगारधर्मामृतवपिणी टी० अ० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम् ४३१ चातुर्घण्टमश्वरयं ' दुरुहड' दूरोहति आरोहति । ततस्तदनन्तरं धृष्टद्युम्नः कुमारो द्रौपयाः कन्यायाः 'सारत्य' सारथ्य-सारथिम करोति, ततः खलु सा द्रौपदी राजवरकन्या काम्पिल्यपुरस्य नगरस्य मध्यमध्येन यौव स्वयम्परमण्डपस्तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य रथं स्थापयति रथात् प्रत्यारोहति प्रत्यवस्ह्य क्रीडिकया लेसिकया च साध स्वयवरमण्ड पम् अनुप्रविशति, अनुप्रविश्य करतलपरिगृहीत दशनख शिरआवर्त मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा तेपां वासुदेवप्रमुखाणा ग्रहण राजवरसहअश्वरथ में सवार हो गई। (तएण से धट्ठज्झुण्णे कुमारे दोबई कमाए सारत्य करेड, तण्ण सा दोवइ रायवरकण्णा कपिल्लपुर नयर मज्झमज्झेण जेणेव सयवरमंडवे तेणेव उवागच्छद) उस के सवार होते ही धृष्टद्युम्न कुमार ने उस द्रौपदी कन्या का मारथ्य किया-उमके रथ पर सारथि का काम कियो-द्रौपदी के रथ को हाका। इस तरह घृष्ट द्युम्न के द्वारा हाके गये रथ पर बैठी हुई वह राजवर कन्यो द्रौपदी कांपिल्य पुर नगर के बीच से होकर जहा स्वयवर-मडप या उस ओर चल दी। ( उवागच्छित्ता रह ठवेड रहोओ पच्चोम्ड, पच्चोरुहित्ता किड्डाविया लेहियाए सहि सयवरमडव अणुपविसह, अणुपविसित्ता करयल तेसिं वासुदेवपामुक्खोण यहण रायवरसहस्साण पणाम करेड) वहां पहुचकर उसने रथ को खड़ा करवा दिया-रथके खड़े होते ही वह उससे नीचे उतरी, नीचे उतर कर वह उस लेखिका क्रीडन धात्री के साथ स्वयवर मडप में प्रविष्ट हुई। प्रविष्ट होकर के उसने अपने दोनों होयों को जोड कर उन वासुदेव प्रमुख हजारों राजाओ को प्रमाण __ (तएण से धट्ठज्जुण्णे कुमारे दोईए पनाए सारत्व करेड, तएण सा दोपद गयवरकण्याकपिल्लपुर नगर मज्झ मज्झेणे जेणेव सयवरमडवे तेणेव उवागच्छड) જ્યારે તે સવાર થઈ ગઈ ત્યારે કુમાર ધુને તે દ્રૌપદી રાજવર કન્યાના રથ ઉપર બેસીને સારથીનું કામ સંભાળ્યું આ પ્રમાણે ધૃષ્ટ વડે હાકવામાં આવેલા તે રથ ઉપર સવાર થઈને તે રાજવર કન્યા દ્રૌપદી કપિધપુર નગરની વચ્ચે થઈને જ્યા સ્વયે વર મડપ હતું ત્યા રવાના થઈ (उवागच्छित्ता रह ठवेड रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरु हत्ता रिहावियाए लेहियाए सदि सयपरमडव अणुपविसद, अणुवविसित्ता करयल तेसि वासुदेव पामुक्साण वहण रायवरसहस्साण पणाम करेइ) - ત્યા પહેચીને તેણે રથને ભાવડા, જ રે રથ થંભ્યો ત્યારે તે થે ઉપરથી નીચે ઉતરી, નીચે ઉતરીને તે લેખિકા કીડન ધાત્રીની સાથે સ્વય વર મડપમાં પ્રવિણ થઈ પ્રવિણ થઈને તેણે વાસુદેવ પ્રમુખ હજાર રાજાઓને પિતાના બને હાથ જોડીને નમસ્કાર કર્યા
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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