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________________ 3- -- -- - भगारधर्मामृतवर्पिणी टोका अ० १६ द्रौपदीचरितवर्णनम् २६९ सामुदायिक्या भेया ताडिताया सत्या समुद्रविजयप्रमुखा दश दशार्दा यावत्-- महासेन प्रमुखा पट्पञ्चाशद्वलयत्साहस्रया पट्पञ्चाशव-सहस्रममिता बलवन्तो राजानः स्नाता यापद्-सलिकारविभूपिता यथाविभवद्धिसत्कारसमुदयेन 'अप्पेगइया ' अन्यके-यापदन्केचिद् हयारूढा अश्वारूढाः केचिद् गजारूहाः, केचिद् रथारूढा. केचिद् पादविहारचारेण यत्रैव कृष्णो वासुदेवस्तीवोपाग न्छति, उपागत्य करतल० यावत् कृष्ण नासुदेन जयेन विजयेन-जयविजय शब्देन वर्धयन्ति । ततः खलु कृष्णो वासुदेव कौटुम्बिफपुरुपान शब्दयति, शब्दयित्वा एमवादीन-भो देवानुप्रियाः ! क्षिप्रमेन ' अभिसेक्कं ' आभिषेक्य गज बढे बल से बजायी कि जिससे उससे बडी भारी आवाज निकली (तरण ताए सामुदाइयाए भेरीए तालिया समाणीए समुदविजय पामोक्खा दस दसारा जाव महासेण पामुक्खाओ छप्पण बलवंगसाह स्सीओ पहाया जाव विभूसिया जहा विभव इड्रो सक्कारसमुदएण अत्थेगाया जाब पायविहार चारेण जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवाग च्छति ) इस तरह उस सामुयिकी भेरी के बजने पर समुद्रविजय आदि दश दशा? ने यावत् ५६ हजार महासेन प्रमुख बलिष्ठ राजाओ ने स्नान किया। यावत् समस्त अलकारों से विभूषित होकर एवं सबके सब अपने विभव मद्धि और सत्कार के अनुसार जहा कृष्ण वासुदेव थे वहा आये । इनमे कितनेक घोडों पर कितनेक हाथियों पर कितनक रथों पर बैठकर आये और कितनेक पैदल ही चलकर आये (उवागच्छित्ता करयल जाव कण्ह वासुदेव जएण विजएण बद्वाति, तएण से कण्हे वासुदेवे कोडुपिय पुरिसे सदावेह सद्दवित्ता एव वयासी, खिप्पामेव तालियाए समाणोए समुदविजयपामोक्ता दस दसारा जाव महासेण पामु एखाओ छप्पण बलगमाहरसीओ व्हाया जाय विभूमिया जदा विभव इड्ढी सकारसमुदएण अप्पेगइया जाव पायविहारचारेण जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव समागच्छ ति) मा शते ते सामुवि सेरी गाउामा मापी त्यारे समुद्र विजय વગેરે દશ દશાહે એ યાવત ૫૬ હજાર મહાસેના પ્રમુખ બલિષ્ઠ રાજાઓએ નાન કર્યું યાવત તેઓ સર્વે સમસ્ત અલ કારેથી સુસજજ થઈને પિતાના વિભવ અને સંસ્કારની સાથે જ્યાં કૃષ્ણ-વાસુદેવ હતા ત્યાં ગયા આમા કેટલાક ઘોડા ઉપર, કેટલાક હાથીઓ ઉપર, કેટલાક રથ ઉપર સવાર થઈને ત્યાં પહેચ્યા હતા તે કેટલાક પગે ચાલીને જ કૃષ્ણુ-વાસુદેવની પાસે હાજર થયા संता (बागच्छिवा करयल जाब कण्ड वासुदेव जएग विजरग बद्धाव दि तपण से कण्हे वासुदेवे कोडु पियपुरिसे सदावेह सदाविचा एक क्यासी खिप्पा
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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