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________________ २५६ natasures तत खलु सा द्रोपदी राजस्व या उन्मुक्तषाम्भारा यावा, उत्कष्ट शरीरा जाता चाप्यमत्रम् । ततः पलु तां द्रोपदी राजकन्यामन्या काचिद 'ओ उरियाओ' आन्द वियन्तःपुरवर्तिन्यः श्रियः नाव यात्रा फफारविभूपिता कुर्वन्ति न्यायपादित 'पेमंत 'प्रेपन्ति वतः खलु सा द्रौपदी राजनराय राजा सोपागच्छति, उपागत्य प्रुपदस्य राज्ञः पादग्रहण करोति, ततः खलु समुपडी गजा द्रौपदी टारिकामके KW होकर इम तरह पलने पुपने लगी कि जिम तरह गिरि की कदरा के के प्रदेशमें उत्पन्न हुई चपकलताना रहित निरुपस्थान में आनन्द साथ पल्ती पुपती है । (तरण मा दोवई रामपरका उम्मुक्त्रमाल भावा, जाव फिटसरीरा जाया याथि होस्था, तण्ण त दोवड़ रायब रकन्न अण्णया कयाई अते उरियाओ पहाय जाव विभूतिय करेंति, करिता डुवयस्स रण्णो पाए वदिउ पेसति ) यह राजवर कन्या द्रौपदी के बालभाव रहित होकर जय यौवन अवस्था वाली हो चुकी तथ इस शरीर में लावण्य की चमक से विषय सौन्दर्य आ गया-अतः उस समय यह विशेषरूप से एत्कृष्ट शरीर वाली पनगई। किसी एक दिन की बात है कि अत. पुर को त्रियों ने द्रौपदी को स्नान कराकर यावत् खाल कार से विभूषित किया और विभूषित कर के पद राजा की चरण वंदना करने के लिये भेज दिया ( तण सा दोवह राय० जेणेव दुवए राधा तेणेव उद्यागच्छइ, उवागच्छित्ता, दुबधस्स रण्णो पायगण करे, દારિકા પાચ ધાયમાતાએથી યુક્ત થઇને આ પ્રમાણે લાલિત પાલિત થવા માડી જેમકે પર્યંતની કદરાના પ્રદેશમા ઉત્પન્ન થયેલી ચ પલતા નિર્વાત निपद्रव स्थानमा सुणेथी भेोटी थती न होय ! ( ६एण सा दोवई रायवर कन्ना उम्मुक्कथालभावा जाव उकिट्टसरीरा जाया यानि होत्या, तपण त दोवई रायवरकन्न अण्णया कयाई भते उरियाओ पहाय जाव विभूसिय करेति करिता दुवयस्सरणो पाए व दिन पेस ति) ते शनवर ४न्या, द्रौपदी भयथायु वटावीने જ્યારે યુવાવસ્થા સ પન્ન થઈ ગઈ ત્યારે તેના શરીરમા લાવણ્યના ચમકથી સવિશેષ સૌદર્યાં દીપી ઉઠયુ તેથી તે વખતે તે વિશેષ રૂપથી ઉત્કૃષ્ટ શરીર વાળી થઈ ગઇ હતી કાઈ એક દિવસની વાત છે કે રણવાસની સ્ત્રીઓએ દ્રૌપ દીને સ્નાન કરાવ્યુ યાવત્ વજ્રલ કારાથી વિભૂષિત કરી અને વિભૂષિત કરીને हुयह शन्ननी यश्शु १ हा ४२वा भाटे भोली (तएण वा दोवइ राय जेणेव दुवए राया तेणेब खबागच्छइ, वागच्छित्ता, दुबयश्च रण्णो पाए। वपण
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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