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________________ Re भ्रमाचा ( नो मारिका आर्या गोपालिकानामार्याणामेन 'नो भादा' नाहियते, नो परिजानी ते उपने ध्यान न दर्शनि, । अनाद्रियमाणा=मनार कुती अपरि जानाना=पानपदानावर ता: गोपालि आर्याः शुकुमारिकामार्यागभीक्ष्णं=पुनः पुनरभिदी विसंगति निपात्र परि भरन्ति । अभीक्ष्ण= पुनः पुनः एम् उक्त शोमाकरण जलमक्षेपादिक निवारयन्तिप्रतिषेति । 'ती' सम्याः सुकुमारि काया श्रमणीभिर्निग्रन्यीभिः टील्यमानाया या सर्यमाणाया अयमेतभूष वक्ष्यमाणस्वरूप' आध्यात्मिक यामनोगतः सन्पी - विचारःममुपधत मा (तरण सा समालिया गोवालियाण अजाण ण्यण्ड नो आहार, परिजाना, अणादागमाणी, अपरिजानमाणी, विहर) सुकुमारिका आर्या ने गोपालिका आर्या के हम कपन रूप अर्थ को आदर की दृष्टि से नही देखा, उनके चचनों पर उसने कुछ भी ध्यान नही दिया। इस तरह उनके वचनो का अनादर और उन पर ध्यान नही देती हुई वह रहने लगी (तणं ताओ अज्जाओ सुमालि अज्ज अभिक्खण २ यमद्व निवारेंति, तण्ण तीसे तुमालिया समणीति नियीएिं हीलि ज्जगणीए जाव चारिज्जमाणीत इमेयाख्वे अज्मस्थि जाय समुपज्जि हथा ) इस के पश्चात् उन गोपालि का आर्या ने उस खुकुमारिका आर्या की वार २ अवहेलना की, उस पर वे गुस्सा भी हुई उसकी निंदा भी की यावत् उसका तिरस्कार भी किया । यार २ उसे शरीर की शोभा करने से और जल का सिंचन करने से रोका। तब उसे इस प्रकार का હે દેવાનુપ્રિયે1 તમે તે સ્થાનની આલાચના કરા–પેાતાના અતિચારને પ્રકા शित मु। यावत् तेना भाटे प्रायश्चित्त रे! (तएण सा सुमालिया गोवालियाण अनाण एमट्ट नो आढाइ, नो परिमाणाइ, अणादायमाणी अपरिमाणमाणी, विहरइ ) सुकुमारि भार्याो गोवाति भार्याता मा अधनय अर्थने व्याहरनी દૃષ્ટિથી જેયા નહિ, તેમના વચનેા ઉપર તેણે કઈ પણ વિચાર કર્યાં નહિ આ રીતે તેમના વચનનેા અનાદર અને તે પ્રત્યે બેદરકાર થઈને તે પાતાના वध्यत असार ४२१ा लागी ( तरण ताओ अज्जाओ सूमालिय अज्ज अभिक्वण २ एयमट्ठ निवारे ति, तएण तोसे सुमालियाए समणीहि निग्गयोहि होलिज्जमा णी जाब वारिज्जाणीव इमेयावे अज्जत्थिए जान समुप्पज्जित्था ) त्या२पछी તે ગેાપાલિકા આર્યોએ તે સુકુમારિકા આર્યાની વારવાર અવહેલના કરી, તેની તરફ તેમણે ગુસ્સા પણ બતાયૈા, તેના નિંદા કરી યાવતુ તેના તિરસ્કાર પણ કર્યો તેને વારવાર શરીરને શેલાવવા ખદલ તેમજ જળનુ ખાલ
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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