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________________ २४४ रिज्जामिति पहिरामि पनि कानिगाणं ' निदान परोति, कुत्रा आतापनभूमिय' प्रत्यारोदति भागापना पग्रिी०१४॥ मूलम्-तएण सा सूमालिया अज्जा सरीरवउसा जाया यावि होत्था, अभिक्खण अभिक्सण२ हत्थे धोवह पाए धोवेइ सांसं धोत्रेड मुह धोद धणंतगड धोवेड करसतराई धोवेड गोज्झतराइ धोवेइ जत्थ ण ठाणे वा सेज वा निसीहियं वा चेएइ तत्व विय णं पुयामेव उदएणं अव्भुस्खइन्ता तओं पच्छा ठाणं वा३ चेइए, तएण ताओ गोवालियाओ सूमालिय अज एव क्यासी-एव खल्ल देवाणुप्पिया। अजे अम्हे सम. णीओ निग्गंधीओ ईरियासमियाओ जाब वभरधारिणीओ नो खल्ल कप्पइ अम्हं सरीरवाउसियाए होतए, तुम च णे अजे! सरीरवाउसिया अभिरखण अभिक्खणं हत्थे धोवेसि जाव चेएसि, तं तुम ण देवाणुप्पिए । तस्स ठाणस्त आलो. एहि जाव पडिवज्जाहि, तएण सा सूमालिया गोवालियाण अज्जाणं एयम8 नो आढाइ नो परिजाणइ अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी विहरइ, तएण ताओ अज्जाओ सूमालियं अज्जं अभिक्खणं अभिक्खणं अभिहीलति जाव परिभवति, अभिक्खणं अभिक्खण एयम निवारेति, तएणं तीए सूमा लियाए समणीहिं निग्गंथीहिं हीलिज्जमाणाए जाव वारिज को भोगू । ऐसा विचार कर उसने निदान बध किया और करके फिर वह आनापन भूमि से आतापना लेकर अपने स्थान आगई ॥ सू०१४॥ બધ કર્યો અને કરીને તે આતાપન ભૂમિથી આતાપને લઈને પિતાના સ્થાને આવી ગઈ ! સત્ર ૧૪ છે
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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