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________________ Kinnar _MAIकया 'भरियाप गहिकया भागारियानामपि भटतो भाग्यशाली भविष्यसि । ततः खल समय पुरुः गागर समय मणिोनिजीरगेति, प्रतिश्रुत्य सुकुमारिक या दारिपगा साधं पासमानप्रतिमनि, सामारिययादारिश्या सार्य 'तरिगसि' तस्ये गयनीय जीनिपीटाति उपशिनि । नत' पल मद्रमक पुरुप सुकुमारिताया मोक्तम् Amतारपा अाप पटिमोटर प्रतिसवेदयनि-प्रत्यनुगाति शेपं यथा सागरस्प-शेपवर्णन मागस्ताकद गोध्यम् , यावत्-अत्र या दादिद दृश्यम्-गिपत्रादीना स्पादिप्यनिष्टतर तदा स्पर्श ज्ञाचा सागरदारप पद् दम्पपुरपोऽपि न मारिया मुबमामा मात्रा शयनीयादतिष्ठति, अभ्युत्थाय गगहाद निर्गति, निर्गन्य स उमटरमार्टि मनोज्ञ एच मनोम है । मैं अपनी इम पुत्री को तुम्ने तुमारी भायों के रूप में प्रदान करता है (भरिया भाभो भविजमि, ताण से दमग पुरिसे सागरदत्तस्म एयम पनि०२ समारिया दारिया सदि वास घर अणुपचिसइ, अणुपरिसित्ता समारियाए तारिया मद्धि तलिंगास निवजह ) इस भाग्यशालिनी से तुम भी भातशाली पनजाओगे। दमकपुस्प ने सोगरदत्त के इस फायनरूप अर्थ को अगीकार करलिया, और फिर चर एस सुकुमारिका दारिका के साय चासगृह में प्रविष्ट हुआ। वहा जाकर वह उस सुकुमारिका दारिका के साथ साथ एक हा पल ग पर-रैठ गया-सोगया (तपण से टमगपुरिसे सूमालिया इम एयारूच अगफास पडि सवेदेड सेम जहा सागररम जाच सयणिज्जाओं अन्भुद्देइ, अभिहित्ता वासघराओ निग्गच्छड, निग्गचित्ता खडमल्लग અને મનેમ છે હુ મારી આ પુત્રીને તમને તમારી પાનીના રૂપમાં આપું છું भदियाए भद्दओ भपिज्जसि, तएण से दमगपुरिसे सागरदत्तस्स एयम पहि० २ सूमालियाए दारियाए सद्धिं वासघर अणुपविसइ, अणुपविसित्ता सुमालियाए दारियाए सद्धि तल्गिसि निपज्जा) આ ભાગ્યશીલાથી તમે પણ ભાગ્યશાળી થઈ જશે તે દરિદ્ર પુરૂષ સાગરદત્તની એ વાતને સ્વીકારી લીધી અને ત્યારબાદ તે સુકુમારિક દારિકાની સાથે વાસગૃહમાં પ્રવિણ થયે ત્યાં જઈને તે દરિદ્ર માણસ મુકુમારિક દારિ કાની સાથે એક જ શયા ઉપર બેસી ગયે (तएण से दमगपुरिसे मूमालियाए इम एयारूप अगफास पडिसवेदेइ, सेस जहा सागरस्म जान सयणिज्जाओ अब्भुट्टेड, अभुद्वित्ता वासघराओ निग्ग छह निग्गच्छित्ता खडमल्ल्ग वडघडग च गहाय म
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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