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________________ १८२ Brekene जात्र गिरिकंदरमालीणा इन पपकल्या निव्वाण निव्वाघायंसि जाय परिवइ, तपणं मा सूमालिया दारिया उम्मुधचालभाषा जाव रुवेण य जोवणेण य लावण्णेण य उक्किट्टा उक्कड सरीरा जाया यावि हत्था || सू० ७ ॥ टीका- ' सा ण तओ ' इत्यादि । साप नागश्री. वतन तरम् उद्वर्त्य जम्बूद्वीपे दीपे भारते वर्षे चम्पाया नगर्थी सागरदत्तस्य सार्थवादस्य भद्राया भार्यायाः कुक्षौ ' पचायाया ' प्रत्यायाता गर्भसमागता । ततः ख मा महा सार्थवाही नवसु मासेषु बहुमतिपूर्वेणु अष्टमेषु रात्रिन्दिवेषु व्यतिक्रान्तेषु सत्सु दारिको 1 साण तओतर' इत्यादि । टोकार्थ - (सा ण तओsणतर उचट्टित्ता) इसके बाद वह नागश्री खर पृथ्वी कायिका से निकल कर ( इहेब जनदीवे दोघे भारहे वासे चपाए नयरीए सागरदत्तस्स सत्यवाहस्स भद्दाए भारिया कुच्छिसिदारित्ताए प्रच्चायाया ) इसी जबूदीप नाम के द्वीप में स्थित भारतवर्ष नामके क्षेत्र में वर्तमान चपानगरी में सागरदत्त सेठ की धर्मपत्नी- भद्रा की कुक्षि में पुत्रीरूप से अवतरी (तएण सा भद्दा सत्यवाही नवग्रह मासाण दारिय पयासा सुकुमालकोमलिय गयनालुयसमाण तीसे दारियाए निव्वन्त वारिसाहियाए अम्मापियरो हम एयारूव गोन्नं गुणनिष्पन्न नाम घेज्ज करेति, जम्हाण अम्ह एसा दारिया सुकुमाला गयतालुय समाणा त होउण अम्ह इमीले दारियाए नामधेज्जे सुकुमालिया ) भद्रा सार्थ 'सा ण तओऽनंतर उवट्टित्ता' इत्यादि - अर्थ - (साण तओऽणतर उबद्वित्ता) त्यारपछी ते नागश्री भर पृथ्विा विस्थी नीणीने (इहेत्र जबूद्दीवे दीवे भारहे वासे चपाए नयरीए सागरद तस सत्थवाहरू भद्दाए भारियाए कुच्छिसि दारिया पच्चायाया ) એ જ જ મૂઠ્ઠીપ નામના દ્વીપમા આવેલા ભારતવર્ષ નામના ક્ષેત્રમા વિધનાન ચ પાનગરીમા સાગરદત્ત શેઠની ધમ પત્ની ભદ્રાના ઉદરમા પુત્રી રૂપમા અવતરી (तएण सा भद्दा सत्यवाही नवन्द मासाण० दारिय पयाया सुकुमालकोम लिय गयतालयसमाण तीसे दारियाए निव्वत्तवारिसाहियाए अम्मापियरो इमे एयारूव गोन्न गुणनिफन्न - नामधेज्ज करेंति, जम्हाण अम्ह एसा दारिया - माला गयतालुयसमाणा'त होउण अम्द इमी से दारियाए A
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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