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________________ madand शारदिफ यावत्-स्नेहारगाढम् आहारिगस्य धुक्तता, सो मुन्तिरेण परिणम्यमाने आहारे परिणाम माप्ते सति शरीरे वेदना मादुर्भवा, साकीशी ? त्यारउज्ज्वला तीवा, यारर 'दुहियासा' दुरध्यासारभिसा-अमन्यः । ततः खल्ल स धर्मरुचिरनगारो ऽस्यामा, टीनपराकमा, अरला मनोपलरहितः बीये इतोत्साहः अपुरुपकारपराक्रमः,-पुरुषार्थदीनः, 'अपारणिज्जमितिका अधार णीयमिति कत्या-धारयितुमचरपमिद गरिमितिमनमि रिचार्य 'भापारमडग' आचारभाण्डकम्-आचागय आचारपानार्य माण्डकमाण्डोपकरणं पत्रपात्रादिक धम्ममइस्स त सालय जाव नेहावगाह आहारियम ममाणस्स मुहूत्त तरेण परिणममाणसि सरीरगंमि पेयणा पाउम्भूया उजलो जाव दुरहियासा-तरण से धम्ममई अणगारे अथामे अपले अवीरिए अपुरिस फ्भारपरकमे अधारगिज्जमित्ति कटु अपारभडग पगते ठवेह, ठवि ता यडिल्ल पडिलेहेइ, पडिलेरित्ता दाभसधारग सथारेइ, सवारिसा दन्भतथारग, दुरुहह, दुरुहिता पुरत्वाभिमुहे सरलियकनिसन्ने कर यल परिग्गहिय एवं चयासी) शाक उन धर्ममचि अनगार के पेट में पहुंचते ही एक मुहर्त के बाद जय वह पचने लगा तय उनके शरीर में उज्ज्वल यावत् दुरधिध्यास वेदना प्रकट हुई। इस से वे धर्मवि अनगार पराक्रम से होन, मनोपल से विहिन, हतोत्साह होकर पुरु पार्थ रहित यन गये। यह शरीर अब धारण करने से अशक्य हो रहा है ऐसा जय उन्होंने प्रतीत होने लगा तय उन्होंने अपने आचारभांडक पविध आचार पालने के लिये जो- वस्त्र-पाचादिक ये उनको -एकान्त में रख दिया-रग्वकर फिर उन्हों ने सस्तारफभूमि का (तएण तस्स धम्ममइस्स त सालइय जाव नेहावगाढ आहारियस्स समा जस्स मुहुत्ततरेण परिणममाणसि सरीरगसि वेयणा पाउन्भूया उज्जला जाव दुरहियासा-तएण से धम्मरूई अणगारे अथामे, अपले अवीरिए अपुरिसकारपर क्कमे अधारणिज्जमित्ति कटु आयारमडग एगते ठवेइ, ठवित्ता थडिल्ल पडि लेहेइ, पडिलेहित्ता दुभसथारग सथारेइ, सथारिचा दमसथारग दुरुहइ, दुरुहित्या पुरस्थाभिमुहे सपलियकनिसन्ने करयलपरिग्गहिय एच चयासी ) શાક તે ધર્મરુચિના પેટમાં પહોંચતા જ એક મુહૂર્ત પછી જ્યારે તેનું પાચન શરૂ થયુ ત્યારે તેમના શરીરમાં ઉજવલ યાવત્ દુરભિધ્યાસ વેદના થવા માંડી તેથી તે ધર્મરુચિ અનુગાર પરાક્રમ વગર, મનોબળ વગર હૉત્સાહી થઈને પુરુષાર્થ વગર બની ગયા હવે આ શરીર ટકવું અશકય થઈ પડયું છે એવી જ્યારે તેઓને પ્રતીતિ થવા લાગી ત્યારે તેમણે પે ' આચાર,
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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