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________________ माधर्मामृतपिणी टीका अ० १५ नदिफलस्वरूपनिरूपणम् अथना " भग्गलुग्गस्म भग्नरुग्णाय भग्नाय = त्रुटितहस्तपादाद्यवयाय रुग्णाय = रोगाक्रान्ताय रोगग्रस्ताय वा 'साहेज्ज ' साहाय्यम् = औषधो पचारादि करणरूप ददाति तथा सुग्घ - सुखेन = सुवपूर्वक च तम् महिच्छत्रा नगरी ' सपावे: ' समापयति = समापयिष्यतीत्यर्थः । ' तिक्हु' इति कृत्वा एवमुच्चार्य द्वितीयमपि तृतीयमपि चार घोषयत, घोषयित्वा मम ' एय माणत्तिये' एतामाज्ञप्तिकाम्-एतद्रूपा ममाज्ञा ' पच्चपिगह ' प्रत्यर्पयत - मदुक्ता घोषणा न निवेदयतेत्यर्थः । ततः खलु ते कौटुम्बिकपुरुषाः 'तथास्तुसुरसुण अहिच्छत्त सपावेइ, त्ति कट्टु दोच्चपि तच्चपि घोसेह) पद त्राण (जूना) रहित है तो जूना (पदत्राण ) देगा जलपान रहित होगा उसे जलपान देगा, कलेवा (भोजन) रहित है तो कलेवा (भोजन) देगा, शम्प लपाथेय पूरक द्रव्य से रहित है तो उसे शम्पल पाथेय-भाता पूरक द्रव्य .. देगा, अर्थात् चलते२ बीच मार्गमें ही जिसका कलेवा (भोजन) समाप्त हो जावेगा उसे उसके योग्य द्रव्यप्रदान करेगा, मार्गके मध्य में चलते२ यदि वह घोड़े से गिर गया होगा, अथवा पैदल चलते२ यदि वह पैर फिसल कर गिर गया होगा और इस तरह से उनके हाथ पैर आदि टूट गये होंगे तो उसकी सार समाल करेगा- रोगी की दवाई करेगा, और घड़े आनन्द के साथ उसे अहिच्छत्रा नगरी में पहुँचा देगा । इस प्रकार की इस घोषणा को तुम लोग दो तीन बार करना । और ( घोसित्ता मम एयमाणत्तिय पच्चपिणह ) करके फिर हमे पीछे इसकी खपर देना (तएण ते कौडनियपुरिसा जाब एव वयामी हदि सुणतु भवतो चपा भग्गुलुग्गस साहेज्ज दलयर, सुह सुहेण अहिच्छत्त सपावे, त्ति कछु दोच पि तच्चपि घोसेह ) 6 3 - १०७ જોડા વગરના હશે તેને જોડા આપશે, જમવાની સગવડ હશે નહિ તેને જમવાની સગવડ કરી આપશે રાખન-પાથેય-પૂરક દ્રવ્ય વગરના હશે તેને શબલ-પાથેય--પૂરક દ્રવ્ય આપશે. એટલે કે મામા અધવચ્ચે ભાતુ ખલાસ થઈ ગયુ હશે તેને ચેાગ્ય ધન આપશે મામા અધવચ્ચે ચાલતા ચાલતા જો તે ઘોડા ઉપરથી પડી જશે અથવા પગે ચાલતા ચાલતા જો તે પગ લપસવાથી પડી જશે અને તેથી તેના હાથ પગ વગેરે ભાગી ગયા હશે તે તેની તે સુષા કરશે-રોગની દવા કરશે અને મુખેરી તેને અહિચ્છત્રા નગરીમા પહેાચાउसे या शेते तमे मे त्रय वमत घोषणा उसे भने ( घोसित्ता मम एयमाण तिय पचणिह ) घोषणा हरीने अमने अमर (तपण ते कोड नियपुरिसा जात्र एव व्यासी इदि सुणतु भवतो चपानयरी
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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