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________________ kou ताधर्मका काल स्थिति महप्ता ? भगवान्पाट - हे गौतम ! ' अड्डाइज्जा ' अर्द्ध तृतीये= सा द्वे पल्योपमे स्थितिः प्रज्ञप्ता । गौतमः पृच्छति - फाली हे भदन्त | देवरी तस्मादेवलोकाद् अनन्तरम्=आयु रस्थितिक्षयानन्तर उन्नहिता उट्टत्य = निस्टत्य कृत्र गमिष्यति कृत्रउत्पत्स्यते ? | ' भगवानाह - हे गौतम ! सा काली देवी देवलोकान्च्युला महाविदेहे वर्षे उत्पध सेत्स्यति । कालीए ण भते । देवीए केचइय काल टिई गत्ता ? गोयमा अढाइ जाइ पलिओ माई ठिईपण्णत्ता ) इस तरह से हे गौतम । काली देवी नेवर दिव्य देवद्वि ३, अर्जित की हे स्वाधीन की है और उसे अपने उपभोग के योग्य बनाया है । अव गौतम पुन प्रभु से पूछते हैं कि है भदत ! कालीदेवी की कितनी स्थिति है ? उत्तर में प्रभु ने उनसे कहा- हे गौतम ! कालीदेवी की स्थिति अढाई पल्य की (प्रज्ञप्त हुई ) है ( काली कि ण भते ! देवी ताओ देवलोगाओ अणतर उचट्टित्ता कहिं गच्छहिर, उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहेवासे सिज्झिहिद एव खलु जबू समणेणं जाव सपत्तेण पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमठ्ठे पण्ण त्तिवेमि, धम्मकहाण पढमज्झयण समत्त ) हे भदत ! कालीदेवी उस देवलोक से आयु एवं भवस्थिति के क्षय के अनन्तर निकलकर कह जावेगी, कहा उत्पन होगी ? इस गौतम के प्रश्न का उत्तर प्रभु ने उ इस प्रकार दिया - गौतम ! वह काली देवी देवलोक से चव कर म 1 આ પ્રમાણે હે ગૌતમ 1 કાલી દેવીએ તે ક્રિષ્ન દેવર્ષિં ૩ પ્રાપ્ત છે સ્વાધીન બનાવી છે અને તેને પાતાને માટે ઉપલેગ ચેગ્ન ખતાવી હવે ગૌતમ ફરી પ્રભુને પૂછે છે કે હે ભદન્ત ! કાલી દેવીની સ્થિતિ કેટ જવામમા પ્રભુએ તેમને કહ્યુ કે હું ગૌતમ ! હાલી દેવીની સ્થિતિ અઢી પત્યા (अज्ञप्त थर्ध) छे ( कालीन भते 1 देवी ताओ देवलोगाओ अनंतर उट्टित्ता कहि गच्छि हिइ, कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा | महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, एत्र बलू जबू ! समणेर्ण जाव सपत्तेन पढमस्स वग्गस्स पदमज्झयणस्स अयभट्ठे पण्णत्ते त्ति बेमि, धम्मकहाण पढमज्झयण समत्त ) બદન્ત ! કાલી દેવી તે દેવલેાકથી આયુ અને ભવસ્થિતિને પૂરી કરીને કયા જશે ? કયા ઉત્પન્ન થશે ? આ પ્રમાણે ગૌતમના પ્રશ્નને સાભળીને પ્રભુએ ઉત્તરમા તેને કહ્યુ કે હું ગૌતમ 1 તે કાલી દેવી જે ચીને
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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