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________________ तामा पच्चुण्णमइ पच्चुण्णमित्ता कडयतुडियर्थभियाओ भुयामओ साहरइ साहरित्ता करयल जाव की पत्र वयासी-मोऽरधुर्ण अरहताणं जाव सपत्ताणे नमोऽत्युणं समणस भगवओ महा वीरस्स जाव सपाविउकामम्स बंदामि गं भगवत तरथगयं इह गया पासउ म भगव तत्थ गए इह गयत्तिरह वदा नमसइ वदित्ता नमंसित्ता सीहासणपरसि पुरत्थाभिमुहा निसपणा, तएणं तीसे कालीए देवीए इमेयारूबे जाव समुपजिस्था -सेयं खल्ल मे समणं भगवं महावीरं वदित्ता जाव पज्जुवा सित्तएत्तिकटु एवं सपेहेइ सपेहिता आभिओगिए देवे सदावेइ सहावित्ता एवं बयासी--एव खल देवाणुपिया। समणे भगव महावीरे एव जहा सूरियाभो तहेव आणत्तियं देइ जाव दिव्य सुरवराभिगमणजोग्गं जाणविमाणं करेह करित्ता जाव पच्च पिणह, तेवि तहेव करेत्ता जाव पच्चप्पिणंति, णवर जोयण सहस्सवित्थिणं जाणविमाण सेस तहेव, तहेव णामगोय साहेइ तहेव नट्टविहि उवदंसेइ जात्र पडिगया ॥ सू० २१, टीको~'जदण भते' इत्यादि । जम्वृस्वामीपृच्छति-यदि खलु 'भते' भदन्त ! हे भगवन् ! श्रमणेन यावत्सपाप्तेन धर्मस्थाना दशवर्गाः प्रज्ञप्ता' जइण भते ! इत्यादि। टीका-~(जहण भते ! समणेण जाव सपत्तण धम्मकहाण दसपना पण्णत्ता पढमस्सण भते वग्गरस समणेण जोव सपत्तण के अ६ पण्णत्त ? एच खलु जसमणेण जाव सपत्तेण पढमस्स) जग्वामी श्री जइण भते | इत्यादि~ (जइण भते । समणेण जाव सात्तेण धम्मकहाण दसवग्गा पण्णता पढमस्त गं भते । नग्गरम समणेणं जाव सपत्ते के अढे पण्णत्ते ' एप खलु जयु' सम गेण जाव सपत्तेण पढमस्स० )
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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