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________________ ज्ञानाचा 1 'तसे' स्यादित प्रथमस्य श्रुतस्य एकोनविं] मतिरभ्ययनानि ' एगमरगाणि परुपकानिमानोकदारणानि तराले उद्देश्वरहितानि एकोन विंशति दिवसेषु समाप्यते ॥ मु० ७ १ मगलं भगवान ः मग गौतम' म' | सुधर्मा मंगल, जनू जैनधमंत्र मलम् ॥ १ ॥ इति श्री विश्वनिपात- जगदम-मसिद्वाचकपञ्चदशभाषाक लिखखलितक लापालापक-पचिद्वगद्यपद्यनेकग्रन्थनिर्मापक-वादिमानमर्दन - श्रीशाइन्छ त्रपति कोलापुररानमा- 'जैनशास्राचार्य परभूषित - कोल्हापुरराज गुरु-पालनाचारि - जैनाचार्य - जैनधर्मदिनाकर पूज्यश्री-रासीलारअतिरिरचिताया ' शाताधर्मकथा ' सूत्रस्थानगारधर्मामृतत्र दिव्याख्याया व्याग्याया ममयुतम् समाप्तः ॥ ફર્ J में इस कथन में मैंने अपनी तरफ से कोई भी कल्पना मिश्रित नहीं की है किन्तु प्रभु के मुख से जैसा मैने इसे सुना है वैसा ही यह तुम से मैंने कहा है । "तस्से " त्यादि इस प्रथम श्रुतस्कघ के अन्तराल उद्देश रहित १९ अध्ययन है । ये अध्ययन १९ दिनों में समाप्त होते हैं। - सारिक समस्त जीवों के लिये यदि मंगलकारी पदार्थ है - तो ये हैं भगवान महावीर प्रभु गौतमगणघर, सुधर्मास्वामी, जबू Farat और जैनधर्म | इस तरह ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सुनके प्रथम श्रुतस्कर सपूर्ण આ સ્થનમા મે મારા તરફથી કાઈપણુ જાતની કુપના મિશ્રિત કરી નથી, याशु प्रभुना भुाथी लेवु मे सामज्यु छे तेवुन मे अछे “ तहसे " त्यहि આ પ્રથમ જીત રક ધના તરાલમા ઉદ્દેશ રહિત આગણીસ અયના છે આ અધ્યયના એગણીસ દિવમામા સમાસ હાય છે ટીકાર્યં ~~~ધા સાસારિક જીવાના માટે જે મગળકારી પદાર્થા છે તે તે એજ છે-ભગવાન મહાવીર પ્રભુ, ગૌતમ ગણુધર, સુધર્મા સ્વામી, જબૂ રવામી અને જૈન ધર્મ હું આ પ્રમાણે સાતાધમ કથાગના જ્ઞાતા નામે પ્રથમ શ્રુતસ્ક ધ સમાપ્ત થયે '
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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