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________________ ७१२ माया 'तस्से 'स्पादि, तस्य प्रयमस्य श्रुतसायम्य एकोनविंशतिर गयनानि 'एगपरगाणि' एकानि-मानोगारणानिताले उदेशग्विानि एकोन विशति दिवसेषु समाप्यने ।। गृ०७ । मगल मगगन : मगर गौतम' प्रह। सुधर्मा मगल, जघूमनधर्मश्र मालम् ॥ १ ॥ इति श्री विश्वनि पात-जगदमछम-असिद्धाकपश्चदशभाषाकलिनकलितक लापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनेकग्रन्थनिर्मापक-धादिमानमर्दा-श्रीशाहूच्छ पतिकोल्हापुरराजमदत्त-'जैनशावाचार्य' पदभूपित-कोल्हापुररान गुरु-पालनमचारि जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री-बासीलारप्रतिविरचिताया 'शाताधर्मकथार' भूत्रस्यानगारधर्मामृतव विण्याग्याया व्यार याया प्रश्मश्रुतस्कंध समाप्त ॥ इस कथन में मैंने अपनी तरफ से कोई भी कल्पना मिश्रित नहीं की है किन्तु प्रभु के मुग्य से जैमा मने इसे सुना है वैसा ही यह तुम से मैंने कहा है । "तस्से " त्यादि इस प्रथम श्रुतस्कध के अन्तराल में उद्देश रहित १९ अध्ययन है। ये अध्ययन १९ दिनों में समाप्त होते हैं। टीकार्थ:-सासरिक समस्त जीवों के लिये यदि मगलकारी पदार्थ है-तो ये हैं भगवान महावीर प्रभु गौतमगणघर, सुधर्मास्वामी, जबू स्वामी और जैनधर्म। इस तरह ज्ञाताधर्मकबाङ्ग सुरके प्रथम श्रुतस्कप सपूर्ण।। આ કથનમાં મે મારા તરફથી કેઇપણ જાતની કલ્પના મિશ્રિત કરી નથી, ५ प्रभुना मुमथी में सामन्यु छ तर में हुछे " तस्से " त्य આ પ્રથમ કૃતક ધના અતરાલમાં ઉદેશ રહિત ઓગણીસ અ યને છે આ અધ્યયને ઓગણીસ દિવસોમાં સમાસ હોય છે ટીકા –બધા સાસારિક જીવેના માટે જે મગળકારી પદાર્થો છે તે તે એજ છે-ભગવાન મહાવીર પ્રભુ, ગૌતમ ગણધર, સુધમાં સ્વામી, જબ હવામી અને જૈન ધર્મ “આ પ્રમાણે જ્ઞાતાધર્મ કથાગને જ્ઞાતા–નામે પ્રથમ કૃતક ધ સમાપ્ત થયે”
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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