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________________ अमगारधर्मामृतपिणी टीका अ० १९ पुण्डरीक- वण्डरोकचरित्रम् करिता, सयमेव चाउजाम धम्म पडिवज्जइ, पडिवजित्ता कंडरीयस्स सतिय आयारभडय गेण्हइ, गेण्हित्ता, इम एयारुव अभिग्गहं अभिगिन्हइ - कप्पड़ में थेरे वंदिता मंसित्ता थेराणं अतिए वाउजाम धम्म उवसपजित्ताणं तओ पच्छा आहार आहरितए तिकट्टु, इम च एचारुव अभिग्गह अभिगिण्हेत्ता णं पोडरिगिणीए पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खभित्ता, पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगाम दूइजमाणे जेणेव थेरा भगवतो तेणेव पहारेत्थ गमनाए॥ सू०५॥ 4 टीका- 'तएण पुडरीए ' इत्यादि । ततः खलु पुण्डरीकः स्वयमेन पञ्च मुष्टिक लोच करोति, तथा स्वयमेव ' चाउज्जाम ' चातुर्याम= चतुर्महानतलक्षण धर्म प्रतिपद्यते, प्रतिपद्य, 'क्टरीयम्म सतिय ' कण्डरीकस्य सत्कम् = कण्डरीक सम्बन्धि इत्यर्थः ' आयारभडय ' आचारभाण्डक आचाराय= माधोः पञ्चविधा चारपरिपालनाय यद्भाण्डक = त्रिपात्रसदो कमुखवखि कारजोहरणादिरूपम् तद् ७३७ " तएण पुरी सयमेव पचमुट्ठिय' इत्यादि । टीकार्य - (तएण ) इसके बाद ( पुडरी) पुडरीक ने (संयमेव ) अपने आप (पचमुट्ठिय लोय करेड) अपना पचमुष्टिक लोंच किया( करिता मयमेव चाउज्जाम धम्म पडिवजह पडिवज्जिन्ता कडरीयस्स सतिय आधारभडय गेण्टइ ) और लोच करके स्वय ही उन्होने-चातु र्याम चतुर्महाव्रत रूप धर्म को धारण कर लिया। एव कडरीक के अनगार अवस्था सन्धी आचार भाण्डक को वस्त्र, पात्र, सदोरक मुख वस्त्रिका, रजोहरण आदिरूप मावु चिह्नों को ले लिया । (गेण्हिता हम एयाख्व अभिग्गह अभिगिन्ट, कप्पह मे घेरे वंदित्ता णमसित्ता 'तरण पुडरीए सयमेव पचमुट्ठिय' इत्यादि । टीडार्थ - (तरण ) सारपछी ( पुडरीए ) चुडरी ( मयमेन ) पोतानी જાતે જ ( पचमुट्ठिय लाय करेइ ) पोतानु प मुष्टिङ सुधन उ ( करिता सयभेन चाउनाम धम्म परिन, पडिवर्जित्ता कडरीयास सतिय भायारभर गेण्ड्इ ) અને લુ થન કરને જાતે જ તેમણે ચાતુમ-ચતુમહાવ્રત રૂપધમ ને ધારણ કરી લીધા અને કડરીકની અનગાર અવસ્થા સબંધી આચાર ભાડકા–વસ, પાત્ર, સદાર મુખવસ્તિકા, રોહરણ વગેરે સાધુ ચિહ્નોને લઈ લીધા चा ९३
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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