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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ०१२ खातोदकविषये सुबुद्धिष्टान्त ૬ धारिणीदेवी, अदीनशत्रुर्नाम कुमारः = जितशत्रुराजपुत्र 'जुवराया' युवराजः = युवराजत्वेऽभिषिक्तचाप्यासीत् । सुबुद्धिर्नामामात्य औत्पातित्यादिबुद्धि चतुष्ट ययुक्त. यावद्' रज्जधुराचितए' राज्य पुराचिन्तक = राज्यभारचिन्तक 'समणों वासए' श्रमणोपासक = श्रावनोऽभिगतजीवाजीव आसीत् । तस्याथम्पाया नगर्या वहिरुत्तरपौरस्त्ये एक 'परिहोइए ' परिलोक परिखा = दुर्गस्य चतुर्दिक्षु रिपुप्र भृतीना प्रवेष्टुमशक्या गर्त्तरूपावेष्टना कारभूमि, तन्न सम्भृतमुदक परिखोदक ' खाईजल ' इतिभाषामिद्ध चाप्यासीत् । तत्कीदृशम् ? इत्याह-' मेयनसा ' प्ररूपित किया हे ? | हे जन् ! सुनो-जो उन्होने १खें अध्ययनका अर्थ निरूपित किया है वह इस प्रकार है- ( तेण कालेन तेण समएण चपा नाम नपरी पुण्ण मद्दे चेहए जियसत्तू राया धारिणी देवी, अदीणसत्तू नाम कुमारे जुवराया यावि होत्या ) उस काल और उस समय में चपा नाम की नगरी थी। उसमे पूर्णभद्र नाम का उद्यान था । उस नगरी के राजा का नाम नितनु था । उस की वारिणी देवी नाम की रानी थी । अदीन शत्रु नाम का इस का पुत्र था । यह युबराज था । ( सुबुद्धी अमच्चे जाब रज्जधुराचितण समणोवास ) सुबुद्धि नाम का इस का अमात्य था । यह औत्पत्तिकी आदि चारो प्रकार की बुद्धि से संपन्न था। यावत् यही राज्यभार का चितक था । जीव अजीव आदि तच्चो का यह जाता था और श्रमणोपासका । (तीसे ण चपाए णय नहिया उत्तरपुरच्छिमेण ण्गे परिहोद‍ यावि होत्या ) उस चपा नगरी के बाहर उत्तरपौरस्त्यदिग्भाग मे - ईशानकोण में - परि खोदक - खाई मे जल भरा था । दुर्ग (किल्ला) के चारो और बाहर की तरफ ( तेण कालेन तेण समएण चपा नाम नगरी पुष्णभद्दे चेइ" जियसत्तू राया धारिणी देवी अदीणसत्तू नाम कुमारे जुवराया याच होत्या ) તે કાળે અને તે સમયે ચા નામે નગરી હતી. તેમા પૂર્ણભદ્ર નામે ઉદ્યાન હતેા તે નગીના રાજાનું નામ જીતશત્રુ હતુ ધારિણીદેવી નામે તેની पत्नी हुती तेना पुत्रनु नाम महीनगनु हेतु मने ते युवरान तो ( सुबुद्धि अमच्चे जाव रज्जधुरा चितए समणोपासए ) सुयुद्ध नाभे तेना सभात्य ( મત્રી ) હતા તે ઔત્પિત્તિકી વગેરે ચારે પ્રનની બુદ્ધિસ પક્ષ હતા અને ગત્યનુ રાામન તેના હાથમાં જ હતુ જીવ અજીવ વગેરે તત્ત્વાનુ તેને જ્ઞાન હતુ અને તે શ્રમણે પાસક હતા (ती सेणचाणीए नहिया उत्तरपुर्रा उमेण एगे परिहोइए यात्रि होत्या) ચપાગરોની બહાર ઉત્તર પૌન્ય સામા−ઇશાન કાણુમા-પરિખોદક ખાઇમાં પાણી ભર્યું હતું. દુ ની ચામેર બહારની માત્રુએ કેટની પાસે शी ८५
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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