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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ०१२ खातोटकविषयेसुबुद्धिद्रष्टान्त ६८१ धारिणीदेवी, जढीनशत्रु म कुमार' जितशत्रुराजपुत्र 'जुवराया' युवराजःयुवराजत्वेऽभिषिक्तचाप्यानीत् । सुमुद्धिनीमाऽमात्य ओत्पातिश्यादिशुद्धि चतुष्ट ययुक्त. यावद् ‘रज्जधुराचितए' राज्य पुराचिन्तकाराज्यभारचिन्तक 'समणो वामए' श्रमणोपासक आरोऽभिगतजीवोजीवनासीत् । तस्याश्चम्पाया नगर्या वहिरुत्तरपौरम्त्ये एक 'परिहोदए ' परिखोटक परिखा-दुर्गम्य चतुर्दिक्षु रिपुप्र भृतीना प्रवेष्टुमशक्या गर्तरूपावेष्टनाकारभूमिः, तन्न सम्भृतमुदक परिवोदक । खाईजल ' इतिभाषाप्रमिद्व चाप्यासीत् । तत्कीदृशम् ' इत्याह-'मेयरसा' प्ररूपित किया है । हे जबू! सुनो-जो उन्होने १२वें अध्ययनका अर्थ निरूपित किया है वह इस प्रकार है- (तेण कालेण तेण समण चपा नाम नथरी पुण्ण भद्दे चेहए जियसत्तू राया धारिणी देवी, अदीणसत्तू नाम कुमारे जुराया यात्रि होत्या) उस काल और उस समय में चपा नाम की नगरी थी। उसमे पूर्णभद्र नाम का उद्यान था। उस नगरी के राजा का नाम जितशनु था। इसी बारिणी देवी नाम की रानी थी। अदीन शत्रु नाम का इस का पुत्र या । यह युवराज या। (सुबुद्धी अमच्चे जाव रज्न पुराचितए समणोवास ) सुवुद्धि नाम का इम का अमात्य था। यह औत्पत्तिकी आदि चारो प्रकार की वृद्धि से सपन या। पावत् यही राज्यभार का चिनक था। जीब अजीव आदि तत्वो का यह ज्ञाता था और अमणोपासक पा। (तीसे ण चपाए णयरी रिया उत्तरपुरच्छिमेण एगे परिहोदए यावि होत्या) उस चपा नगरी के बाहर उत्तरपौरस्त्यदिग्भाग मे-ईशानकोण मे-परि खोदक-खाईमें जल भरा था। दुर्ग (किल्ला)के चारो और बाहरकी तरफ (तेण रालेण तेण समएण चपा नाम नयरी पुण्णभद्दे चेइए जियसत्तू राया धारिणी देवी अटीणमत्त नाम कुमारे जुबराया यावि होत्या) તે કાળે અને તે સમયે ચ પ નામે નગરી હતી તેમાં પૂર્ણભદ્ર નામે ઉવાન હતું તે નગરના રાજાનું નામ જીતશત્રુ હતુ ધારિણીદેવી નામે તેની पत्नी तो तेना पुत्रनु नाम महीनशत्रु तु भने ते युवा ते! (सुबुद्धि अमन्चे जार रजधुरा वितए समणोनामए) सुमुद्धिनामे तना अमात्य (મત્રિી) હને તે સ્પિત્તિ વગેરે ચારે પ્રકારની બુદ્ધિસ પન્ન હતો અને ગજ્યનું શાસન તેના હાથમાં જ હતુ જીવ અજીવ વગેરે તનું તેને જ્ઞાન હતુ અને તે શ્રમણોપાસક હતો (तीसेण चपापणीए पहिया उत्तरपुरन्टिमेण एगे परिनोदए यावि होत्या) ચપા ગરીની બહાર ઉત્તર પૌત્ય ાિમા- ઈશાન કેણુમા-પરિબંદર ખાઈમાં પાછું ભર્યું હતુ દુગની ચેમેર બહારની બાજુએ કેટની પાસે
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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