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________________ अनगारधर्मामुनर्षिणी टो अ० १० जी गाना वृद्धिद्वानिनिरूपणम 'सोम्मयाए ' सौम्यतया नेत्राहाद तया, हीनः निद्धयाए ' स्निग्यतया स्नेहो त्पादकतया, हीन न्यूनः 'क्तीए 'कान्त्या-कमनीयतया। एवम अनेन प्रकारेण हीनशब्दः सर्वत्र वोध्या, यथा-हीनो दीप्त्या प्रमाशेन, हीन 'जुईए' द्युत्या-चाकचिक्येन, हीनः छायया= शोभया, हीन. प्रभया ज्योतिपा, हीन 'ओयाए' ओजसान्दाहशमनस्पेग, हीनः लेश्यया-किरणरूपया, हीनो न्यूनो मण्डलेन भृत्ताऽऽमातया, पूर्णिमाचन्द्राऽपेक्षया, प्रतिपचन्द्रः सर्वथा न्यूनो भवतीत्यर्थः । तदन तर च खलु द्वितीयावन्द्र' प्रतिपद-प्रतिपत्सम्बन्धिन चन्द्र 'पणिहाय' प्रणिधाय-अपेक्ष्य होनतरोन्यूनतरो वर्णेन यावद् मण्डलेन भरतिः । तदनन्तर च खलु तृतीयाचन्द्रो द्वितीयाचन्द्र पणिधाय हीनतरो वर्णेन यावद् कृष्णपक्ष की प्रतिपदा का चद्रना पूर्णिमा के चन्द्रमाकी अपेक्षा शुक्लता रूप वर्ण से हीन होता है, सौम्यता-नेत्राह्लादकता-से हीन होता है, स्निग्धता-स्नेहोत्पादकता-से हीन-न्यून-होता है, कातिकमनीयता से हीन होता है, इसी तरह दीप्ति से,-द्युति से-(चमक से)-छाया-शोभा से ) प्रभा से-(ज्योति से) दाहशमन रूप ओजस से, किरण रूप लेश्या से, एव वृत्ताकाररूप अपने परिमडलसे हीन रहता है-(तयाणतर च ण पीयाचदे पाडिवय चद् पणिहाय हीणतराय वण्णेण जाव मडलेण-तया. णतर चण तडआचदे बिडया चद पणिहाय हीणतराए वण्णेण जाव मडले ण एव खल्ल एएण कमेण परिहायमाणे २ जाव अमावस्सा चदे चाउछस पणिहाय नटे चण्णेण जाव नढे मडटेण) इमके याद कृष्ण पक्ष के प्रतिपदा के चन्द्रमा की अपेक्षा द्वितीया चन्द्रमा वर्ण से लेकर यावत् परिमडल तक और अधिक न्यून बन जाता है-इसके बाद द्वितीयो के चन्द्रमा की अपेक्षा तृतीयो का चन्द्रमा वर्ण से लेकर परि પૂનમના ચંદ્રની અપેક્ષા શુકલતા રૂપ વર્ણથી હીન હોય છે સૌમ્યતા-એટલે કે નેત્ર હાદતાના ગુણથી હીન હોય છે, સ્નિગ્ધતા-નેહપાદકતા-થી હીનन्यून-डाय, अतिउभनीयता-थी ही हाय छ, माश हतिथी-पतिथी(राथी), छाया (1) प्रमाथी (न्यातिथी) हाशमन३। मायाँ રૂપલેશ્યાથી અને વૃત્તાકાર (ગોળાકાર) રૂપ પિતના પરિમડળથી હીન રહે છે (तयाणतरच ण पीयाचदे पाडियय चद पणिहाय हीणतराय चण्णे गं जार मडले ण तयाणतर च ण तइआचदे विडयाचद पणिहार हीणतराए वण्णेण जाब मडलेण एव खलु एएण कमेण परिहायमाणे२ नार अमारस्सा चदे चाउदसे पणिहाय नठे चण्ोण जाउ नठे मडलेण) ત્યાર પછી કૂણુપક્ષની એકમના ચ% કરતા બીજને ચન્દ્ર વણ પરિમ ડળ વગેરે બધી વિશેષતાઓમાં વધારે જૂન થઈ પડે છે એ પછી બીજના ચન્દ્ર
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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