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________________ मतगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ९ माकन्दिदारकचरितनिरूपणम् मूलम् - तपणं से जिणपालिए चप अणुपविसड, अणुपविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं रोयमाणे जाव विलवमाणे जिणरक्खियवावत्ति निवेदेइ, तरणं जिणपालिए अम्मापियरो मित्तणाइ जाव परियणेणं सद्धि रोयमाणा वह लोइयाइ मयकिच्चाइ करेति करिता कालेण विगय-. सोया जाया, तएण जिणपालिय अन्नया कयाइ सुहासण वरगत अम्मापियरो एव व्यासी कहण्ण पुत्ता । जिणर - क्खिए कालगए, तएण से जिणपालिए अम्मापिऊणं लवणसमुद्दोत्तार च कालियवायसमुत्थणं पोतवणविवन्ति च,फलहखडआसायणं च रयणदीवत्तार व रयणदीवदेवया गिण्हणं च भोगविभूइ च रयणदीवदेवयाए आघायणं च सूलाइयपुरिसद रिसणं च सेलगजक्खआरुहण च रयणदी वदेवया उवसग्ग च जिणरक्खियविवृत्ति च लवणासमुद्दउ - त्तरणं च चपागमण च सेलगजक्खआपुच्छण च जहा भूयमवितहमसद्धि परिकहेइ, तरणं से जिणपालिए जाव अप्पसोगे जाव विपुलाइ भोगभोगाइ भुजमाणे विहरइ । तेण कालेन तेण समएण समणे० समोमढे, धम्म सोच्चा पव्वइए एक्कारसगयी मासिकयाएण सोहम्मे कप्पे दो सागरोवमे, महानिदे सिज्जिहि । एवामेव समणाउसो । जाव माणुस्सर कामभोए णो पुणरवि आसायइ से ण जाव 1 disaster जहा या से जिणपालिए । एव खलु जनू । ६४९
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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