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________________ ,६१० anaras uret * · 6 C महदेकम् ' आघायण ' आयातनम् = आघातस्थान नवस्थानमित्यर्थः पश्यतः, तत् स्थान कीदृशम् ? इत्याह--' अडियरासिसयसकुल ' अस्थिराशिशतमधुरम् - अस्टन राशिःपुञ्जः, तेपा शनि, वै. सहु= व्याप्तम् ' भीमदरिसणिल्ल' मीमदर्शनी यम् - दर्शनमात्रेऽपि भयजनकम् । पुनथ वनैक 'सुलाइतय ' शूलाचितक=शूलारोपित पुरुष ' कलुगाइ ' करुणानि कष्णाजनकानि 'कट्टाइ ' कष्टानि = हृदयदुःखो संपादकानि 'विस्मराइ 'विस्राणि निकृतध्वनिकानि वचनानि कुज्जमाण ' कूजन्तम् = अव्यक्तरूपेणोच्चरन्त पश्यत । दृष्ट्वा च भीती 'जाव' यावत्- यावच्छउदेन त्रस्तौ प्रसितौ=नासमाप्तौ उद्विग्नौ इति सजायभया' सञ्जातभयौ= प्राप्त भयौ तौ यस शूलाचि पुरुपनैनोपागच्छतः, उपागत्य त शूलावित पुरुष उस वनपड मे गये। वहां जाते ही उन्हों ने एक शूली चढानेका का स्थान देखा । (अपरासिसयस कुल भीमदरिसणिज्ज एगच तत्थ सूलाइत पुरिस कलुगाई कट्ठाइ विस्सराइ कुज्जमाण पासति पासित्ता भीया जाव सजातभया जेणेव से सूलातियपुरिसे तेणेव उवागच्छति) जिस में सैकडो हड्डियों के ढेर लगे हुए थे। एव जो देखने में बढ़ा भयप्रद था । वही पर उन्हों ने शूली पर चढे हुए एक पुरुष को देखा जो बहुत बुरी तरह चिल्ला चिल्ला रहा था। उसके इस चिल्लाने की आवाज को सुनकर हृदय में दया का प्रवाह वहने लग जातो था । साथ २ में चित्तमें दुःख भी होने लगता था । उसको देखकर ये दोनों भयभीत हो गये । श्रास एव उद्वेग से युक्त बन गये। इसी स्थिति में ये दोनों जहां वह शूली पर चढा हुआ पुरुष था, वहा पट्टचे ( उवागच्छित्ता) वहा पहुँच कर (त खुलाइय एव व्यासी) उहों ने उस शूलारोपित मनुष्य से इस ( अरासिसयसकुल भीमदरमणिज्ज एग च तत्थ सुलाइतय् पुरिस कलुणाई कट्ठाइ कुज्नमाण पामनि पासित्ता भीया जाव सजातभया जेणेत्र से सलातियपुरिसे तेणेत्र आगच्छति ) ત્યા સે કડા હાડકાઓના ઢગલા પડયા હતા ત્યાનું દૃશ્ય એકદમ ભયપ્રદ હતું . તેઓએ ત્યા શૂળી ઉપર ચઢતા એક માણુસને જોયે કે જે બહુજ ખરાખ રીતે કરુણ કદન કરી રહ્યો હતા . તેની કરુણા ભર્યાં અવાજને સાભળીને હૃદયમાં થાના પ્રવાહ વહેવા લાગને હતા અને સાથે સાથે તેની એવી દુદશા જોઇને મનમા દુખ પશુ થતુ હતુ. તેઓ અને તેને જોઇને ડરી ગયા ત્રાસ અને ઉદ્વેગ યુક્ત થઈ ગયા આ પ્રમાણે તેએ અને જરા તે માઝુમ શૂળી ઉપર લટકી રહ્યો હતેા ત્યા ગયા ( उगच्छता ) त्या धने ( त सूल इयं एव घयासी ) तेथे पर लटकता भासने या अभ शुजी
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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