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________________ मैनगारधर्मामृतापिणी टी० म० ९ माकन्दिदारकचरिननिऽपणम् ०५ पश्चात मुहूर्तान्तरात्-घटिकाद्वयरूपमुहर्तानन्तरमिय पासादामतमके 'सइवा' स्मृति अतिव्याकुलचित्ततया भविष्यत्कालिक वनाहुल्यरूपा वा, 'रइना , रति-मनोमुद वा 'धिहवा' धृति-चितस्वास्थ्य वा 'अलभमाणा' अलभमानौ सन्तो अन्योन्यमेवमादियाम्-एव खलु हे देवानुप्रिय ! रत्नद्वीपदेवता आगामेन मवादी-एव सलु अह शक्रवचनसदेशेन सुस्थितेन ल्वगाधिपतिना यावद् व्यापत्तिभविष्यति, 'त' तत्-तस्मात्कारणात् श्रयः खलु आवयो है देवानुप्रिय! पोरस्त्य-पूर्वस्या दिशिस्थित वनपण्ड गन्तुम् । अन्योन्यस्यैतमर्थ प्रतिश्रृणुता दारया ) उन दोनो माकदी के पुत्रो ने (तओ मुहत्ततरस्त पासाय घडिसए सइ या रइ वा धिइ वा अलभमाणा अण्णमण्ण एव वयासी) एक मूहर्त भी उस श्रेष्ठ प्रासाद में अति व्याकुलित चित्त होने के कारण भविष्यत्कालिक सुख बाहुल्य रूप स्मृति को मनोमुद (मन को प्रसन्न करने वाला ) रूप रति को और चित्तस्वास्थ्य रूप धृति को नहीं पाते हए परस्पर में ऐसा विचार किया- ( एव खलु देवाणुप्पिया! रयणद्दीवदेवया अम्हे एव वयासी ) हे देवानुप्रिय ! रयणा देवी ने हम लोगो से ऐसा कहा है कि ( एव खलु अह सक्कवयणसदेसेण सुटिएण लवणाहिवाणा जाव वायत्ती भविस्सइ-त सेय खलु अह देवाणुपिया! पुरच्छि मिल्ल वणसङ गमित्तए ) " मुझे शक्रेन्द्र की आज्ञानुसार लवण समुद्राधिपति सुस्थित देव ने ऐसा आदेश दिया है कि मैं २१ घार लवण समुद्र की प्रदक्षिणा करूँ" इत्यादि से लेकर (तओ मुहत्ततरस्स पासायवर्डिसए सइ वा रइ वा धिइ वा अलभमाणा अण्णमण्ण एव वयासी) તે મહેલમાં એક મુહુર્ત જેટલા પ્રમાણના સમયમાં પણ શાતિ મેળવી નહિ તેઓ વ્યાકુળ ચિત્ત હોવાથી ભવિષ્યમાં પ્રાપ્ત થનારા સુખરૂપ સ્મૃતિને મને મુદ (મનને આન દિત કરનાર ) રૂપ રતિને અને ચિત્ત સ્વાચ્ય રૂપ धति प्रास न ४२ता भीलनी साथ पियार पा साया ( एव सलु देवाणुप्पिया ! रयणदीव देवया अम्हे एप ययासी) आनुप्रिय! २या वीस અમને કહ્યું છે કે (एर खलु अह सक्कवयण सदेसेणं सहिएण लपणाहि इणा जाव पावती भविस्सइ- त सेय खलु अह देवाणुप्पिया ! पुरच्छिमिल्ल वणस गमित्तए) મને શક્રેન્દ્રની આજ્ઞાથી પ્રેરાઈને લવણમમુદ્રના અધિપતિ સુસ્થિત દેવે હુકમ કર્યો છે કે મારે એકવીશ વખત લવણ સમુદ્રની પ્રદક્ષિણા કરવી વગેરેથી
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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