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________________ गारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ०८ जितशध्यादिप इाशांवीक्षाग्रहणादिनिरू० ५४२ भूमिः । मरल्या अर्हतः केवलज्ञानस्य द्विवर्ष - पर्यायेसती तत्तीर्थे साधु अन्तमकापत् - भवान्तमकरोत् न ततः पूर्व कश्चिदपीत्यर्थ । मल्ल खलु अर्हन् पञ्चविंशतिर्धनृपि ऊर्ध्वम् उच्चत्वेन = मल्ल्या अर्हतः शरीरमुच्चत्वेन पञ्चविंशतिर्धनुः परिमितमासीदित्यर्थः । वर्णेन मियहुसमः नीलवर्णइत्यर्थः । समचतुरस्रसस्थानः, वज्रऋषभनाराचसदमन मध्यदेशे ग्रामानुग्राम सुखसुखेन विहत्य चैत्रसमेतः पर्वतस्तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य, समेतशैलशिखरे पादपोपगमनोपपन्न पादपोपगमन सस्तारक स्वीकृतवान् । मल्ली खलु अन् एक वर्षशतम् अगारवासमध्ये वाचार्थ निकलता है। मल्ली अहंत को केवल ज्ञान उत्पन्न हुए जब दो वर्ष हो गये तब उसके बाद ही उनके तीर्थ में अपने भवको अन्त कर साधुजनों ने मुक्ति लाभ किया। इसके पहिले कोई साधु मुक्ति मे नही गया । यही पर्यायान्त करभूमि है । ( मल्ली ण अरहा पणुवीस धणू मुड्ढ उच्चतेण ) इन मल्ली अरहत के शरीरकी ऊँचाई २५ धनुष प्रमाण थी। ( वण्णे ण पियगुसमे, समचउरससठाणे, वज्जरिसभणा राय सघयणे ) शरीर का वर्ण प्रियगु के समान नील था। संस्थान सम चतुरस्र था । सहनन वज्र ऋषभ नाराच था ( मज्झ देसे सुह सुहेण विहरित्ता जेणेव सम्मेए पव्वए तेणेव उवागच्छद्द, उवागच्छित्ता समेय सेलसिहरे पाओबगमणुववण्णे ) मध्य देश में सुख शान्ति पूर्व के बिहार कर ये प्रभु जहाँ समेत पवर्त था वहां आये। आकर उसी समेत शैल शिखर पर पादपोपगमन सधारा उन्हों ने धारण किया । (मल्ली ण अ થાય છે મલી અહુ તને કેવળજ્ઞાન ઉદ્ભવ્યુ, તી મા પેાતાના ભવમા અતકર માધુજનાએ भडेला ने साधुसे भुति भेजवी नथी, से अरहा पणुवीस घणूइ मुढ उच्चत्तेण ) भक्ती धनुष प्रभाणु हती ( वण्णेण पियगुसमे, स घयणे ) शरीरने! २१ प्रियगुना હતુ સહનન વ ષસ નારાચ હતુ ( मज्झदेसे सुह सुहेण विहरित्ता जेणेव सम्मेए पव्वए तेणेत्र उबागच्छा उवागच्छित्ता समेयसेल सिहरे पाओवगमणुववणे ) તેના બે વર્ષ પછી જ તેમના મુક્તિ લાલ મેળળ્યે એના पर्यायान्तर लुभि हे मलीन भई तना शरीरनी उयाई २५ समचउर ससठाणे, वज्जरिसभणाराय वो नीडो इतो सस्थान समयतुरन સુખ શાતિપૂર્વક મધ્ય દેશમા વિહાર કરીને મલ્લી પ્રભુ સમેત પર્યંત ઉપર પહેામ્યા ત્યા પહેાચીને તેઓશ્રીએ સમેત ગૈલ શિખર ઉપર પાપાપ ગમનસ થાય. પ્રાણ કો
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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