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________________ अनगारधममृतपणी टीका म० ८ मल्लीभगवद्दक्षोत्सपनिरूपणम् ५३१ } तत खलु शक्रो देवेन्द्रो देवराजो मनोरमायाः शिविकाया दक्खिणिल्ल= दाक्षिणात्य - दक्षिणदिग्भागस्थम्:, 'उवरिल्ल ' उपरितन उपरिभागस्थ ' चाह वाहुदण्ड गृह्णाति ईशानः - ईशाने द्र. - ' उत्तरिल्ल ' उत्तर दिग्भास्थम् उपस्तिन बाहुदण्डगृहाति, चमर' =चमरेन्द्र: ' दाहिणिल्ल' दाक्षिणात्य = दक्षिण दिग्भागस्थ ' हेल्लि ' अधस्तन दण्ड गृह्णाति, लीवोन्द्रः 'उत्तरिल्ल ' उत्तरीयम् उत्तरभागस्थम् अधस्तन दण्ड गृह्णाति अशेषा देना. भवनपति - व्यन्तर-ज्योतिष्क वैमानिकेन्द्राः, 'जहारिह ' यथाऽई - यथायोग्य स्वस्त्र योग्यताऽनुसार मनोरमा शिपिका परिवहन्ति । " पुर्वित्र उक्खित्ता माणुस्सेहिं तो हट्टरोमकृवेद्दि | पच्छा वहति सीय असुरिंद-सुरिन्द-नार्गिदा ॥ १ ॥ चार गेण्ड, ईसाणे उत्तरिल्ल चार गेण्डड चमरे दारिणिल्ल हेटिल्ल, पली उत्तरिल्ल हेट्टिल्ल अवसेसा देवा जहारिह मनोरम सीय परिवहति) बाद से शक्र देवेन्द्र देव गजा ने उस मनोरमा शिविका के दक्षिणदिग्रभागवर्ती ऊपरके दण्डे को पकडा, ईशानेन्द्र ने उत्तर दिग्भा गस्थ ऊपर के दण्डे को पकड़ा चमरेन्द्र ने दक्षिणदिग्भोगवर्ती नीचे के दण्डे को पकड़ा। अवशिष्ट भवन पति, व्यन्तर ज्योतिष्क एव वैमानिक इन्द्रो ने अपनी २ योग्यता के अनुसार उस शिक्षिका का परिवहन किया । (पुवि उता माणुस्सेरितो र रोमकूवेहिं । पच्छावहति सीय असुरिंद रिंद नागदा ) सबसे प्रथम हर्षके वश से रोमाञ्च युक्त हुए मनुष्यों ने उस शिबिका को अपने स्कंधों पर रखा बाद में असुरेन्द्रों ने, सुरेन्द्रों ( aण सक्के देविंदे देवराया मणोरमाए दक्खिणिल्ल उवरिल्ल are hors, ईसाणे उत्तरिल्ल बाह गेहह चमरे दाहिfree gee alी० उत्तरिल्ल हल्लि अवसेसादेवा जहारिह मनोरम सीय परिवहति ) ત્યાર ખાદ રાક દેવેન્દ્ર દેવરાજે તે મનેારમ પાલખીના દક્ષિણ ખાનુના દડાને આલ્યા, ઇશાનેન્દ્રે ઉત્તર દિશા તરફના ઉપરના ઈંડાને ઝાલ્યા, ચમરેન્દ્રે દક્ષિણ દિશા તરફના નીચેના દડાને ઝાલ્યું, બનીન્દ્રે ઉત્તર દિશા તરફના દડાને ઝાલ્યા ખાકીના અધા ભવનપતિ, વ્યતર, ચૈતિક અને વૈમાનિક ઈન્દ્રોએ પેાતપાતાની ચેાગ્યતા મુજઞ પાલખીનુ પરિવહન કર્યું (पुत्र उकवत्ता माणुस्सेहिंतो हद्वरोम कुबेहिं पथा वहति सीय असुरिंदसुदिनागिंदा ) પુલકિત અને હર્ષઘેલા થયેલા માણુસાએ સૌથી પહેલા પાલખીને પાતાના
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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