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________________ भिषेके वर्तमानेऽप्येकका अप्येके केचन देना. मिथिला राजधानी व साम न्तर चापअन्तर्गहिच यारद-सपर्तः समन्तान दिनु विदिक्षु परिधावनिक हातिशयेन कुर्दन्ति स्म । ततस्तदनन्तर कुम्भोगमा द्वितीयवारमपि उका पक्कमण' उत्तरावक्रमणम्-उत्तराभिमुख मल्ली निवेश्य यावत्-सलिङ्कारविभूषियों करोति । कृत्वा, कौटुम्बिापुरुषान् शन्दयति, शब्दयिरमा, पामरादीव-रे देवा नुभियाः। सिप्रमेव मनोरमा शिरिकामुपस्थापयत । ततस्तदनन्तर खलु शक्रो देखें इस प्रकार जय मल्ही अहंत का अभिषेक होरराथा-तब कितनेक देव हातिशयके वशवर्ती होकर मिथिला नगरीमें भीतर और बहार सब ओर-इधर से उधर कृद रहे थे । (तरण कुभा राया दोच्चपि उसराव क्कमण जाच सवालकारविभूसिय करेइ करिता फोधिधारिसे सहावे सदायित्ता एव क्यासी)जन अभिपेरुमिायासमातरो चुकी-तब कुभक राजाने दूसरी पार फिर मल्ली अरिहन को पूर्व की ओर मुग्व करके सिंग सन पर बैठाया और उन्हें समस्त अलकारो से विभूषित किया बाद में कौटुम्यिक पुरुषों को बुलाकर उनसे ऐसा कहा-(खिप्पामेवमनोरम सा य उवट्ठवेर, ते उचट्ठति तएण सक्के । आभियागिए • विप्पामेव अणेव खभ ० जाव मनोरम सीय उचढवेह जाव मा वि सीया ताबच सीय अणुपविठ्ठा) तुमलोग शीघ्रही अनेक स्तम्भ शत युक्त एक शिक्षिका को उपस्थिन करो- उन लोगों ने भी राजा की आज्ञानुसार शीघ्र वैसीही शिविका लाकर उपस्थित कर दी। इस के अनन्तर शक देवेन्द्र આ પ્રમાણે જ્યારે આબાજુ મલ્લી અર્હતનો અભિષેક થઈ રહ્યો હતે ત્યારે મિથિલા નગરીની બહાર અને અ દર ચોમેર હર્ષાતિરેકથી કેટલાક દેવતાએ આમતેમ દૂર રહ્યા હતા (तएण कुभए राग दोच्चपि उत्तरावकमण जार सन्यालकारविभूसिय करे। करिता कोडवियपुरिसे सदावेइ, सदावित्ता एस क्यासी) જ્યારે અભિષેકની વિધિ પૂરી થઈ ત્યારે કુ ભક રાજાએ બીજી વખત મલી અહ તને પૂર્વની તરફ મો રાખીને બેસાડયા અને તેમને બધા ઘરે ણાઓથી શણગાર્યા ત્યારપછી કૌટુંબિક પુરૂને બેલાવીને તેને હુકમ કર્યો કે : (विप्पामेव मनोरम सीय उववेह, ते उपद्धति, तएण सक्के ३ आभियो (गिए० खिप्पामेव अग्रेग खभ० जाव मनोरम सीय उवट्टवेह नाव सावि सीया त चेव सीय अणुपचिट्ठा) તમે લોકો સેકડો થાભલાઓવાળી એક પાલખી સત્વરે લો મૈટુ બિક પરબાદ પુરૂષે પણ જલદીથી રાજાની આજ્ઞા મુજબ પાલખી લઈ આ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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