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________________ अंनगारधर्मामृतवाणी टीका अ० ८ मल्लीभगयहीक्षोलवनिरूपणम् ५२६ विपुल तीर्थकराभिषेकमावनमुपस्थापयत, यावद्-उपस्थापयन्ति । तेऽपिदेवोपस्थापिताः सर्वेऽपि कलशास्तानेर-कुम्भकोपस्थापितानेव कलशान अनुप्रविष्टा', दिव्याः कलशा दिव्यानुभावेन कुम्भक कलशेष प्रविष्टास्तेन कुम्भकलशाना शोभतिशय सजात इति भावः। ततस्तदन्तर खलु स शक्रो देवेन्द्रो देवराजः कुम्भको राजा च मल्लोमन्ति सिंहासने पौरस्त्याभिमुख-पर्पदिशाऽभिमुख निवेशयति-उपवेशयति । अष्टसा. रेणअष्टाधिकसहस्रण, सौवर्णिकाना यावत् अभिपिश्चति, अष्टाधिकसहस्रसख्यकैः प्रत्येक कलश सौवर्णिकादि स्नपयतीत्यर्थ ततस्तदनन्तर खलु मल्ल्या भगवतोके अभिषेक के साधनों को उपस्थित करो। उन सय ने वैसा ही किया। (ते वि कल सा तेचेव कलसे अणुपविट्ठा, ताण से सक्के देविंदे देवराया कुभराया घ मल्लि अरह मीहाप्तणं पुरत्याभिमुह निवेसेह) इस तरह कुमक राजा द्वारा उपस्थापित कलशों के साथ २ वे सब दिव्य कलशएक जगह मिलाकर रख दिये गये। इससे कुभक राजा के कलशो की शोभा और अधिक बढ गई। बाद में शक देवेन्द्र देवराज ने और कुमक राजा ने मल्ली अर्हन्त को सिंहासनके उपर पूर्वाभिमुख करके बैठा दिया। (अट्टसरस्सेण सोवपिण याण जाव अभिसिंचा, तएण मल्लीस्स भगवओ अभिसेए वहमाणे अप्पेगइया, देवा मिहिल च समितरवाहिरिय जाव सचओ समता परिधावति ) बैठा ने के बाद फिर उन्हों ने उन१००८, सुवर्ण आदि केप्रत्येक कलशों से उनका अभिषेक किया। પ્રમાણમા લાવે તેઓ બધાએ તેમ જ કર્યું (ते शिकलमा ते चेत्र कलसे अणुपविठ्ठा, तएण से सक्के देविंदे देवराया कुभराया य मल्लि अरह सीहासण पुरत्याभिमुह निवेसेह) આ રીતે કુંભકરાજા વડે મૂકાએલા ળશેની સાથે જ તે દિવ્ય કળશે પણ એક જ સ્થાને ગોઠવી દીધા એનાથી કુભક રાજના કળશેની શોભા ખૂબ જ વધી ગઈ ત્યાર પછી શક દેવેન્દ્ર દેવરાજ અને કુભક રાજાએ મલી અહં તને સિંહાસન ઉપર પૂર્વ દિશા તરફ મે રાખીને બેસાડી દીધા ( अट्ठ सहस्सेण सोवणियाण जाव अभिमिंचा, तएण मल्लिस्स भगवयो अभिसेए वट्टमाणे अप्पेगइया, देवा मिहिल च सभितरवाहिरिय जाय सबओ समता परिधानति) બેસાડીને તેઓએ એક હજાર આઠ નોન વગેરેના દરેકે દરેક કળશથી તેમને અભિષેક કર્યો
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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