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________________ ५१० ज्ञाताधर्मक ते जभगा देवा वेसमणेण एव पुत्ता समाणा रड तुट्टा जाब पश्चिति, पडिणित्ता उत्तरपुर स्थिम दिसीनाग अवस्कमंति, अवक्कमिता जाय उत्तर वेउच्चियाइ, रुवाइ विउन्नति) इस के मात्र वैश्रमण देव के द्वारा इस तरह अज्ञापित हुए उन जभक देवो ने हर्षित एव सतुष्ट होकर उस की आज्ञा को मान लिया- स्वीकार कर लिया-1 स्वीकार कर दे ईशान कोण की ओर गये । वहा जाकर उन्हो ने उत्तर वैक्रिय रूपों की विकुर्वणा की - (विचित्ता ताए उक्कट्टा जान वोहवयमाणा जेपद बूद्दीवे दीवे भार हे वासे जेणेव मिहिला रायहाणी, जेणेव कुभगस्स रनोभवणे तेणेव उचागच्छति ) चिकुर्वणा करके फिर वे उस देव कृति सन्धी उत्कृष्ट गति से यावत् चलते हुए जहा जीप नाम का द्वीप भारत वर्ष नाम का क्षेत्र, उस में भी जहा मिथिला नाम की राजधानी उसमें भी जहा कुमक राजा का राज प्रासाद था वहा आये । ( उवागच्छित्ता कुभगस्स रण्णो भवणसि तिन्नि कोडिसया जाव साहरति ) वहा आकर उन्हों ने कुमक राजा के भवन में तीनसौ अट्ठासी करोड और ८० लाख सुवर्ण दीनार से भडार भर दिया। (साहरि Jw (तएण जभगा देवा वेसमणेग एव युत्ता समाणा हट्ट तुडा जाव पडिसुणे ति पडिणित्ता उत्तरपुर स्थिम दिसीभाग अनक्कमति अवक्कमित्ता जान उत्तरउनियाइ नाइ विउ ति ) ત્યારબાદ વૈશ્રવણુ દ્વારા આજ્ઞાપિત વધેલા ઝુભક દેવેએ તિ તેમજ સ તુષ્ટ થઈને તેની આજ્ઞાને માની લીધી એટલે કે તેની આજ્ઞા સ્વીકારી સ્વીકાર્યા બાદ તે ઈશાન કાણુ તરફ ગયા ત્યા જઈને તેઓએ ઉત્તર વૈક્રિય રૂપાની વિધ્રુણા કરી (वित्ताता हाए जात्र वीइवयमाणा जेणेव जबूद्दीवे दीवे भारहे वासे जेणेव मिहिला रायहाणी, जेणेव कुभगस्स रण्णो भवणे तेणेव उपगच्छति ) વિકુણા કર્યાં પછી તેએ દેવગતિ સ ખ ધી ઉત્કૃષ્ટ ગતિથી ચાલતા જ્યા જ ખૂદ્રીપ નામે દ્વીપ, ભારતવષઁ નામે ક્ષેત્ર અને તેમા પણ જ્યા મિથિલા નામની રાજધાનીમા કુભક રાજાના મહેવ હતા ત્યા ગા ( वागच्छित्ता कुभगस्त, रण्णो भवणसि तिन्नि कोडिसया जान साहर ति) ત્યા જઈને તેઓએ કુલ- રાજાના મહેલમા ત્રણસે ઈકચાશીકાય અને એથી લાખ સેાનામહારા બડ઼ાર-ખજાનામાં મૂકી દોષી
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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