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________________ dev ताकया मयी प्रतिकतिः, तत्रोपागच्छति, उपागत्य तस्याः कनकपतिमाया मस्तकाद तत्-पिधानरूप पम् 'अबणेइ' अपनयतिद्रीकरोति, पापसारणेन कनकमय प्रतिकतेमस्तकोपरिस्थितन्त्रमुदाटयतीत्यर्थः । ततस्तदनन्तर सल गन्धादुर भिगन्धः, 'गिद्धापइ' निर्धापति शीध्र पहिनिःसरति, तद् यथा नामकम्तथाहि-यथा-'अहिमटेति या' अहिमृतक इति वा मृतमर्पस्य तीनदुर्गन्धः प्रस रति, तद्वदित्यर्थः, स यावत्-गोमृताडन, श्वमृतकडयेत्यादियोध्यम् ' एत्तोवि'एतस्मादपिदुर्गन्धात् अशुभवर एवं-नत्यन्तं मनो कितिननास्तीव्रतरो दुःसहश्चैव पर्त्तते । तत खलु ते जितशत्रुप्रमुखास्तेनाशुभेन गन्धेनाभिभूताः सन्त स्वर वकरुत्तरीयैः उत्तरीयाः, 'णासाह' नासिकाः पिदधति-आच्छादयति पिधाय 'परम्मुहा' पराङ्मुखाः परावर्तितमुखास्तिष्ठन्तिस्म । जहा वह सुवर्णमयी प्रतिमा थी वहा आई । (उचागच्छित्ता तीसे कणग पडिमाग मत्थयाओ त पत्रम अवणेह) यहा आकर के उस ने उस कनक मय पुतली के मस्तक से उस कमल को हटाया (तएण गधे णिद्धावइ ) ढक्कन के हटते ही उम में से बहुत भारी दुर्गन्ध निकली (से जहानामा अहिमडेति वा जाव असुमतराव चेव) वह दुर्गध ऐसी अशुभतर थी कि जैसी मरे हुए सर्प के सडे शरीर की होती है तथा गोमृतक एव श्वमृतक, की होती है । (तपण ते जियसत्त् पामोक्खा तेण असुभेण गधेण अभिभूया समाणा सएहिं २ उत्तरिज्जेहिं णासाइ पिहेंति ) उस दुर्गंध के निकलते ही उन जितशत्रु प्रमुख छहों राजाओं ने अपने २ उत्तरीय वस्त्राचलों से अपनी २ नाक को ढक लिया । (भूति) ती त्याग (उवागन्छिता तीसे कणगपडिमाए मत्थयाओ त पउम ) अवणेइ) त्या भावाने तेरे ते सोनानी प्रतिभापर २७दु सेनाना भगवाणु ढ 6घायु (तएण गध णिद्धावइ ) २ था माथी मयत माम हु न हामी से जहानामए अहिमडेति वा जाव असुभतराए चेव) તે દુર્ગધ એટલી ખરાબ હતી કે મરેલા સાપના સડી ગયેલા શરીરની તેમજ ગેમૃતક અને શ્વમૃતકની હોય છે (तएण ते जियसत्तू पामोक्खा तेण असुभेण गधेण अभिभूया समाणा सए हिं २ उत्तरिज्जेहिं णासाइ पिहति) દુર્ગધ બહાર આવતાની સાથે જ છતશનું પ્રમુખ છએ રાજાઓએ सामाननी ..
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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