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________________ अनगारधर्मामृतपणी टी० भ०८ कनकमयपुत्तलिस्वरूपनिरूपणम् પટે कन्याया स्पे= मनोहाराकारे च यौवने वयसि लावण्ये - यौवनव योजनितकान्ति निशेषे च मूर्छिता- रूपयौवनलाण्यदर्शनेन मोहिताः, 'गिद्धा ' गृद्धाः = लोलुपाः, ' गढिया ' ग्रथिता:- निपद्धचित्ता, अभ्युपपन्ना = अत्यन्तासक्ताः अनिमेषया निमेषपातरहितया दृष्ट्या प्रेक्षमाणा २ अनुक्षण पुन, पुनर्विलोकयन्तस्तिष्ठन्ति स्म । ततस्तदनन्तर खलु सा मल्ली विदेहराजवर कन्या स्नाता यावत्- सर्वालकारविभूषिता वहीभिः कुब्जिकाभि र्यावत् - दासीभिः ' परिक्खित्ता' परिक्षिप्ता= परिवेष्ठिता यत्रैव जालगृह गनाक्षयुक्त गृह, यत्रैव कनकप्रतिमा स्वकीया सुवर्ण का पद्मोत्पल से ढका हुआ था देखा (एमण मल्ली विदेह रायवर कृष्ण त्ति कट्टु मल्लीए विदेह रायवरकन्नाए रुवे य जोव्वणे य लावण्णेय मुचित्रा गिद्धा गढ़िया अज्झोचवण्ण अणिमिसाए दिए पेहमाना रचिट्ठति देख कर अरे ! यह तो विदेह राजवर कन्या मल्ली कुमारी हैं, ऐसा जान कर वे सब उस विदेह राजवर कन्या मल्लीकुमारी के रूप यौवन एव लावण्य पर मूच्छित हो गये मोहित हो गये, लोलुप हो गये । उन में उनका चित्त बन गया । इस तरह अत्यत आसक्त होकर वे सब के सब अनिमेष दृष्टि से वार २ उस की तरफ देखते रहे । (तएण सा मल्ली विदेrरायवरकन्ना पटाया जाव सव्वालकारविभूसिया बहर्दि खुज्जाहिं जाव परिक्खित्ता जेणेव जालघरए जेणेव कणयपडिम तेणेव उबागच्छइ ) इस के पश्चात् विदेह राजवर कन्या मल्लीकुमारी स्नान आदि कर के समस्त अलकारो से विभूषित शरीर हो अनेक कुजक सस्थान वाली दासियो के साथ २ जहा वह जाल गृह और उस में भी जोoaणे य लावण् य मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोनवण्णा अणिमिसाए- दिट्ठीए पेहमाणा २ चिट्ठति ) જોઈને “ અરે આતે વિદેહરાજવર કન્યા મલીકુમારી જ છે ” આમ જાણીને તેએ બધા વિદેહરાજવર કન્યા મલ્ટીકુમારીના રૂપ યૌવન અને લાવ યના પ્રભાવથી મૃતિ થઇ ગયા મહિત થઈ ગયા લાલુપ થઈ ગયા તેમાં તેમનુ ચિત્ત ચાટી ગયુ આ રીતે ખૂખજ આસક્તથને તેઓ બધા વારવા તેની તરફ જોતા રહ્યા ( तएण सा मल्ली त्रिदेहरा यवरकन्ना व्हाया जाव सञ्चालकारविभूसिया - ज्जाहिं जा परिक्खित्ता जेणेव जालधरए जेणेव कणयपडिमं
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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