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________________ ४७२ जाताधर्मकथा मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुभगं एव वयासी- तुभेण ताओ अण्णदा मम एज्जमाण जाव निवसेह, किण्णं तुव्भ अज्ज ओहय मण सकप्पे जाव झियायह?, तरणं कुभए महि विदेहरायवर कन्न एवं वयासी एवं खलु पुत्ता तप कज्जे जियसत्तूप्पमुखेहि छहि राईहिं दूया सपेसिया, तेणं मए असक्कारिया जाव निच्छूढा, तएण ते जि यस पामोक्खा तेसि ट्र्याण अतिए एयमह सोचा परिकुविया समाणा मिहिलं रायहाणि निस्सचार जाव चिहति । तपर्ण अह पुत्ता तेसि जियसत्तूपामोखाण छण्ह राईण अंतराणि४ अलभमाणे जाव झियामि, तएण सा मही विदेहरायवरकन्ना कुंभय राय एव वयासी -माण तुम्भ ताओ । ओहयमणसकप्पा जाव झियायह, तुम्भेणं ताओ तेसिं जियसत्तूपामोक्खाण छण्ह राईणं पत्तेय रहसि दूसपेसे करेह, एगमेग एव वदह-तव देमि महिं विदेहरायवरकण्णं तिकट्ट सझाकालसमयसि पविर लमणुसारी निसतसि पत्तेय २ मिहिल रायहाणि अणुष्पवेसेह अणुष्पवेसित्ता गव्भघरएसु अणुष्पवेसेह, मिहिलाए रायहाणीए दुवारा पिह, पिहित्ता रोहसज्जे चिट्ठह, तरणं कुभए एवं० त चेव जाव प्रवेसेह, रोहसज्जे चिहइ || सू० ३४ ॥ टीका - तएण ते ' इत्यादि । ततस्तदनन्तर खल जियशत्रुममुखा षडपि राजानो यत्र मिथिला नगरी तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य मिथिला राजधान 'तएण ते जियसत्तू पामोक्खा ' इत्यादि ॥ टोकार्थ - (तएण ) इसके बाद (जियसत्तू पामोक्खा छप्पिरायाणो जेणेव (तएण ते जियसत्तू पामोक्खा ) इत्यादि टीकार्थ - (तएणं ) त्यार माह ( जियसत्त पामोक्स्खा छप्पिरायाणो जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छति )
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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