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________________ मनगारधर्मामृतवपिणा टीका अ०८ मिथिलानिरोधवर्णनम् ४७३ ‘णिस्सचार' निः सचार-यथा जनाना मवेशनिर्गमरूप सचारस्तर न स्यात् तथा, 'णिरुच्चार ' निरचार-उन्-उई चरणमाकाग्स्योपरिभागेन गमनागमनरूप जनाना यथा न भवेत् तथा, द य क्रिया विशेषण यद्वा-निरच्चारम्-उन्चारः पुरीप तद्विसर्थ यज्जनाना बहिर्गमन तद्रहित यथा स्यात् तथा, सर्वत' सर्वदिक्षु-समन्तात् सनविदिक्षु 'ओरुभित्ताण ' अपरु य-वेष्टयित्वा तिष्ठन्तिस्म । ततस्तदन्तर खलु स कुम्भको राजा मिथिला राजधानीमवरद्धा ज्ञात्वा 'अब्भतरियाए ' आभ्यन्तरिकायाम् = अभ्यन्तरसर्तिन्याम् उपस्थानशालायामूआस्थानमण्डपे सभास्थान इत्यर्थ., सिंहासनवरगत:-राज्ञ प्रधानासनसमुपविष्टा, तेपा जितशत्रुप्रमुखाणा पण्णा राज्ञाम् अन्तराणि-अवसराणि, छिद्राणि-दूपणानि, विवरान्-एकान्तान्, मर्माणि-गुप्तदोपान् अन चकारो वाक्यालङ्कारपर , अलभमिहिला-तेणेव उवागच्छति ) जितश प्रमुव वे छहों राजा जिस तरफ मिथिला नगरी थी उस ओर बढे (उवागच्छित्ता मिहिल रायहाणि णिस्सचार णिसच्चार सन्चओं समता ओरभित्ताण चिति) वहा आकर उन्हों ने उस मिथिला राजधानीको सब ओरसे घेर लिया-इससे मनुष्योंका आना जाना रुक गया-यहा तक हो गया कि कोई भी व्यक्ति कारण सर भी बाहर नहीं निकल सका (तएण से कुमए राया मिहिल रायहाणि रूद्ध जाणित्ता अब्भतरिया उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए) इस के अनन्तर कुभक राजा ने अपनी राजधानी मिथिला नगरी को शत्रुओ द्वारा रुद्व जाना-तय किले की भीतर रहे हुए सभामडप मे स्थित सिंहामन पर बैठकर वह (तेसि जियसत्तू पामीक्स्वाण छण्ट राईण अतराणि छिद्दाणि य विरहाणि य मम्माणि य अलभमाणे) उन જિતશત્રુ પ્રમુખ છએ રાજાએ મિથિલા નગરી તરફ વધા (उवागच्छित्ता मिहिल रायहाणि जिम्मचार णिसन्चार सबओ समता ओसमित्ताण चिट्ठति) ત્યા મિથિલા નગરીની પાસે આવીને ચેમે તેઓએ વેરે ના આ રીતે માણસેની અવર જવર સદતર બધ થઈ ગઈ तएण से कुभए राया मिहिल रायहाणि रुद्ध जाणित्ता अन्भतरियाए उवद्वाणसालाण, मीहासणवरगए ) ત્યારબાદ જ્યારે કુભક રાજાએ પિતાની રાજધાની મિથિલા નગરાને શત્રુઓ ઉડે ઘેરાએલી જોઈ ત્યારે તેઓ લિાની અંદર સભામડમાં સિહાસન ઉપર બેસીને ( तेसि नियसत्तू पामोक्खाण छण्ह राईण अतराणि छिनाणि य विरहाणि य मम्माणि य अलभमाणे) मा ६०
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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