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________________ ર माधर्मकथासू ' जातः, " यथा-एकः कूपमण्डक. स्यात् = आसीत् स सल तत्थ ' तत्र तस्मिन् कुषे न कूपे एन 'बुड्ढे ' वृद्ध = टद्धिंगतः, अभ्यम् -' आगड ' अत्रुट= कृप वा, 'तलाग' तडाग = कमलयुक्तागाधजलाशय ना, ' दह' हूद= प्रसिद्ध, सर' सरःसरोवर वा, सागर वा, अपश्यन्नेव मन्यते-अयमेवापटो वा यावत् सागरो वा । एतस्मात् कृपान्महाजलस्थान मन्यन्नास्तीत्येन मनसि जानातीति भाव । ततस्तदनन्तर खलु व कृपपति, 'अण्णे ' अन्यः सामुद्रक: समुद्रे जातः 'दद्दुरे ' दर्दुरः = मण्डकः, हव्यमागतः - सहजगत्या समागतः । ततः खलु स कूपदर्दुर: = रूपमण्डूक त 'सामुददद्दूर' सामुद्रनिनामिन मण्डूकम् एव = त्रक्ष्यमाण प्रकारेण अनादीत् यथा के एप खलु त्व हे देवानुप्रिय ! ' कत्तो ' ' कुतः=कस्मात् प्रिय ! वह कूपमहक कैसा होता है ! (जियसा ! से जहानामए अगड दद्दुरे सिया से ण तत्थ जाए तथेव बुड्ढे अन्न अंगड वा तडाग वा दह व सर वा सागर वा अपासमाणे चेव मण्णह अय चेत्र अगडे वा जाव (सागरे वा ) इस प्रकार जितशत्रु राजा की बात सुनकर चोक्षा परिवा जिका ने उससे कहा- जितशत्रो सुनो में तुम्हें समझाती हूँ- जसे कोई एक कूपका मेंढक कि जो उसी मे उत्पन्न हुआ हो और उसी मे पलपुष कूर चढा हुआ हो वह जैसे अपने कुए के सिवाय और किसी कुए को, तडांग कमलयुक्त अगाध सरोवर को द्रह को जलाशय विशेष को, अथवा समुद्रको कभी नही देखता हुआ ऐसा ही मानता है कि यही मेरा कुआ और दूसरा कुआ है ? यावत् सागर है। इस कुए के सिवाय और दुसरा कोई बड़ा भारी जलस्थान कहीं पर नही हैं (तएण त व अपणे सामुद्दए ददुरे हव्वमोगण-तण ददुरे ? ) हे हेवानुप्रिय । षाने हे वो होय छे ? (जियसत्तू ! से जहानामए अगडदद्दुरे सिया सेण तत्थ जाए तथैव बुड्ढे अन्न अगडचा तडागं वा दह वा सर वा सागर वा अपासमाणे चेन मण्णइ अय चैव अगडेवा जाव सागरे वा ) આ પ્રમાણે જીતશત્રુ રાજાની વાત ઞામળીને ચેાક્ષા પરિવ્રાજીકાએ તેને કહ્યુ કે જીતશત્રુ સાભળે તમને હુ બધી વાત સમજાવુ છુ જેમ કેાઇ એક કૂવાના દેડકા કે જે કૂવામાતે જન્મ્યા છે અને તેજ ત્યાજ ઉછર્યાં છે તે જેમ પેાતાના કૂવા સિવાય બીજા કાઇપણ વા, તડાગ-કમળાવ છુ અગાધ સરાવર, નૃહે જલાય વિશેષ અને મસ / `ગુ વખત ન લેવાથી એમ જ માને છે કે આ મા 1 ..n J רוור
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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