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________________ ४४८ ज्ञानाधर्मकथासूत्रे 1 अहं सामुद्दए दद्दुरे, तएण से कूददुरे तं सामुद्दय दर एव वयासी के महलए णं देवाणुप्रिया से समुद्दे ?, तएर्ण से सामुदए दद्दुरे त कूवदद्दुरं एव वयासी- महालए णं देवाणुप्पिया । समुद्दे । तएणं से दद्दुरे पाएण लीह कड्डेइ, कड्डित्ता एव वयासी -एमहालएणं देवाणुप्पिया । से समुद्दे १, जो इणट्टे समट्ठे, महालएणं से समुद्दे । तएणं से कूत्रददुरे पुरमत्थिमिलाओ तरिओ उल्फिडित्ता ण गच्छइ, गच्छित्ता एव वयासी - ए महालएणं देवाप्पिया । से समुद्दे १, णो इणट्टे समट्ठे, तहेव एवामंत्र तुमपि जियसतू अन्नेसि वहूण राईसर जाव सत्थवा हपभिईण भज वा भगिणीं वा धूय वा सुह वा अपासमाणे जाणेसि जारिसए मम चेवणं ओरोहे तारिसए णो अण्णस्स, त एव खल जियस मिहिलाएं नयरीये कुंभगस्स घूया पभावतीये अत्तया मल्ली नामति रुवेण य जुव्वणेण जाव नो खल्लु अण्णा काई देयकन्ना या जारिसिया मल्ली, मल्लीए विदेह राययरकन्नाए छिण्णस्स वि पायगुट्टगस्स इमे तवोरोहे सयस हस्स तमपि कल न अग्घइ तिकट्टु जामेय दिस पाउवभृया तामेव दिस पडिगया, तएण से जियसत्तू परिव्याइयाजणियहासे दूयं सदायेइ, सद्दावित्ता जाव पहारेत्थ गमणाए । सू० ३१ ॥ टीका – 'तरण से ' इत्यादि । ततस्तदन्तर स जितशत्रु अन्यदा कदाचित् 'तरण से जियसत्तू अन्नया कयाइ ' इत्यादि ॥ टीकार्थ - (तरण) इसके बाद (से जियसत्तू, वह जिनशत्रु (अन्नया कयाइ) (तरण से जियसत्तू अन्नया क्याइ । इत्यादि दी अर्थ - (तएण ) त्यार माह (से जियसत्त) जितशत्रु (अन्नया कयाइ ) अर्थ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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