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________________ ४० माताधर्मकथाper स्पृष्टायां = नलपक्षेपेण सिक्ता, दर्भोपरि 'पन्चुत्याए ' मत्यस्तताया=प्रसारिताया 'मिसियाया' वृषिकायाम् = भागने निषीदति = उपविशति, निषद्य मल्ल्या विदेहराजवरकन्यायाः पुरतो दानधर्म च यावद् विहरति दान शौषधर्माद कमाख्यापयन्ती मज्ञापयन्ती सा चोक्ता परिनाजिका आस्ते स्म । ततः खलु मल्ली विदेहराजवरकन्या चोक्षा परिनाजिकामेवमवादीत् है चोक्षे ! तत्र खलु किं मूळो धर्म' मक्षप्त ' ततः = मल्ली वचन, श्रवणानन्तर खलु सा परिव्राजकों के मठ से निकली और किननीक परिव्राजिकार्यों को साथ लेकर मिथिला राजधानी के बीचों बीच से होकर वह जहां कुभक रोजा का भवन था तथा उस में जहां कन्यान्तः पुर और उस में भी विदेह राज की उत्तम कन्या मल्ली कुमारी थी वहा आई - ( उवागच्छित्ता उदय परि फासियाए दभोवरि पच्चत्युयाए भिसियाए निसियह वहा आकर वह जल से सिञ्चित हुए तथा दर्भ के ऊपर बिठाये गये आसन पर बैठ गई । (निसियित्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरओ दणिधम्म च जाव विरह ) बैठकर उसने विदेह रायवर कन्या के समक्ष दान, धर्म शौचधर्म आदि की कथा की - प्ररूपणा की (तएण मल्ली वि देहरायवर कन्ना - - चोक्ख परिव्वाइय एव वयासी ) बाद में विदेह राज की उत्तम कन्या मल्लीकुमारी ने उस चोक्षा परिव्राजिका से इस प्रकार कहा - (तुम्भेण चोक्खे किं मूल धम्मे पण्णत्ते ? ) हे चोक्षे । तुम्हारे यहा धर्म किं मूलक ( किस मूलक) प्रज्ञप्त हुआ है । રગેલા વસ્ત્રોને લઈને પરિવાજ કાના મઠથી બહાર નીકળી અને કેટલીક પરિ ત્રાજિકાએની સાથે મિથિલા રાજધાની વચ્ચે થઈને જ્યા કુંભકરાજાના મહેલ હતા તેમજ યા કન્યાન્ત પુર અને તેમા પણ વિદેહરાજાની ઉત્તમ કન્યા મલીકુમારી હતી ત્યા પહેાચી (उवागच्छित्ता उदय परिफासियाए दन्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसिया) ત્યા આવીને તે પાણી છાટેલા દનના ઉપર પાથરવામા આવેલા આસન ઉપર બેસી ગઈ ( निमित्ता मल्लीए विदेह रायवरकन्नाए पुरओ दाणधम्म च जाव विहरह ) એસીને તેણે વિદેહરાજવર કન્યાની સામે દાનધમ, શૌચધમ વગેરેની વ્યાખ્યા ४२ (चोम्स परिवाव्य एव वयासी) त्या२पछी विदेशमनी उत्तम उन्या भटसी डुंभारीभे योक्षा परित्रानिने मा प्रभाषे उछु — ! तुमेण चोक्लेकि धम्मे पण्णत्ते ? ) हे याक्षे ! तभाराभा धर्म भूख अरुपित ठरवामा → लए છે
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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