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________________ ४१८ ज्ञाताधर्म कथासूत्रे रूप=चित्र निर्वर्तयितु = रचयितुम् । एवम् उक्तमकारेण, सप्रेक्षते=स चित्रकरदारको विचारयतिस्म । सप्रेक्ष्य = मनसि विमृश्य, भूमिभाग = चित्रकरणस्थान सज्जयति = मार्जनले पादिना सस्करोति, सज्जयिता मल्ल्या अपि पादानुसारेण यावत् = सदृशक गुणोपेत रूप निर्वर्तयति=रचय तिम्म । ततस्तदन्तर सलु सा चित्रकारश्रेणिथिनसभा' होनभाव - जान ' हावभाव यावन् दावभाव विलास नियोककलितैः रूपैः, चित्रैः चित्तेः' चित्रयति, चिनया यौनमलदत्त कुमारस्तौ रोपागच्छति, उपागत्य यावत् एतामाज्ञा प्रत्यर्पयति- हे स्वामिन् । भरदाज्ञानुसारेण चित्रगृह मल्ली कुमारी के अग में जहा २ जो जो सौन्दर्यादि गुण है उन सब गुणों को उस मरली कुमारी के चित्र में अकित करूँ। ऐसा जब उस ने विचार किया- (सपेहिता) तो उस विचार के अनुसार (भूमि भाग सज्जे, सज्जिता मल्लीए वि पायगुडानुसारेण जावि निव्वते, तएण सा चित्तगर सेणी चित्तसम हावभावजाव चित्ते, चित्तित्ता जेणेव मल्ल दिन्ने कुमारे तेणेव जाव एतमाणत्तिय पच्चपिणइ ) उस ने वहां का भूमिभाग साफ किया-मार्जन, लेप आदि द्वारा उसे सस्कारित किया - संस्कारित करके फिर उस ने वहाँ मल्ली कुमारी का भी दृष्ट पादांगुष्ठ के अनुसार बिलकुल हर जैसे के तैसा गुणोपपेत रूप-चित्र अकित कर दिया । इसके बाद उस चित्रकारो की श्रेणी ने उस चित्रगृह को हावभाव विलास एव विन्चोक वाले रूपों से चित्रों से अकित कर दिया-चित्रित कर दिया - चित्रित कर फिर वे सब के सब मलदत्त कुमार जहा बैठा મલ્ટીકુમારીના આગમા જ્યા જ્યા જે જે સૌના ચુણા છે તે બધા ગુણાને તે મલીકુમારોના ચિત્રમા અતિ કરૂ આ પ્રમાણે જ્યારે તેણે वियार अर्यो - (सपेद्दित्ता ) अने ते वियार ने अनु सरता ( भूमिभागं सज्जे, सज्जित्ता मल्लीए वि पायगुडानुसारेण जावि निव्वत्ते त सा चित्तगर सेणो चित्तसभ हावभाव जावचित्ते, चित्तित्ता जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव जात्र एतमाणात्तिय पञ्चपिणइ ) તેણે તે જગ્યાને છ ખનાવી અને માન લેપન વગેરેથી તે સ્થાનને સાફ કર્યું સાફ કર્યો ખાદ તેણે પહેલા જોયેલા મલ્લી કુમારીના પગના અગૂઠા ના જેવુ જ આમેષ ગુણાપેત રૂપ ચિત્ર સ્મૃતિ કર્યું ત્યાર ખાદ ચિત્રકારોએ જ્યારે ચિત્રગૃહને હાવભાવ વિલાસ અને વિમ્મેકના ચિત્રોથી ચિત્રિત કરી આપ્યુ ત્યારે તે ખધા જ્યા મલકત્ત
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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