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________________ ૩૪૮ श्राताधर्म कथासूत्रे यानि तेपा स्फोटन भयजनकत्वेन विदारक, तथा-दित्तमहोस निणिम्यत' दिसमट्टाट्टहासम् = उग्रमट्टाहास विनिर्मुचन्त = मकुर्वन्तम्, तथा-' बसारु हिरपूयमस मलमलिणपोच्चडतणु ' वसारुधिरपूयमासमल्मलिन पोच डतनुम् = सारुधिरपूयमा समलैर्मलिना पोच्चडा आर्द्रा ' पच पच ' कुर्माणा वनुः शरीर यस्य स तथातम्, तथा - ' उत्तासणय ' उत्नासनकम् = उद्वेजक, विशालाक्षस्कम् = निस्तीर्णवक्षस्थलकम् 'पेच्छतागिन्नणहरोम मुद्दनयणम्नाखग्धचित्तरुत्तीणी सण' प्रेक्ष्यमाणाऽभिन्ननखरो ममुखनयनकर्णवरव्याघ्र चित्र कृत्तिनिवसनम् = तत्र मेक्ष्यमाणा दृश्यमाना अभिभाः =अच्छिन्नानखाथ रोमाणि च मुख च नयने च कर्णौ च यस्या सा प्रेक्ष्यमाणाऽ भिन्ननखरोममुखनयनकर्णा सा चासौ वरव्याघ्रस्य चिना- विविधकर्णका, कृत्ति धर्म सैव निवसन-परिधान पत्र यस्य स तथा तम् अखण्डव्याघ्रचर्मपरि मानमित्य र्थः, तथा-' सरसरुहिरगपचम्मतिमा हुजुर सरसरूनगजचर्म वि ततोच्छ्रुतनाहुयुगल - सरस- रुधिरार्द्रं यद् गजचर्म, तद् वितत - निस्तारित यत्र तत् सरसगजचर्मति, तदेव भूतम् उद्धृतम् उत्थापित वाहुयुगल येन स तथा तम् हुआ था चार २ यह महा उग्र, अट्टहास कर रहा था । इस का शरीर वसा - चर्बी, रुधिर, पूय - पीप, माम एव मल इन से मलिन हो रहा था । और मसक ने पर पच पच इस प्रकार का शब्द करने लगता था । ( उत्तारणय, विशालवच्छ पेच्छताभिन्नणहरोममुनयणकत्र वरवग्धचित्तकत्ती णिवसण, सरसरुहिरगयचम्मविततऊसविय बाहु जुयल) इसे देखते ही लोग कॉप जाते थे । इस का वृक्षस्थल ( छाती ) बहुत विशाल था । इस ने जो व्याघ्र का विविध वर्ण वाला चर्म रूप वस्त्र पहिर रखा था उस मे स्पष्ट रूप से व्याघ्र के अच्छिन्न नख, रोम, मुख, नयन' और कान दृष्टिगत हो रहे थे । अपने उत्थापित किये हुए बाहु युगल मे इस ने लम्बा खून से लथपथ हुआ गीला गज का चमडा धारण कर रखा था । (ताहियखर फरुस असि अट्टहास ४२तो तो तेनु शरीर वसा-यर्णी, बोडी, पीप, भास भने भर्थी ખરડાયેલુ હતુ અને જોરથી દબાવાથી (ફસકી જવાથી) પચ’ પચ શબ્દ થતુ હતેા (उत्तासणय, विसालवच्छपे च्छता भिन्नगह रोममुहनयणकन्ननरवग्ध चित्तकत्ती सिण, सरससहिरगयचम्म वितत ऊसवियवाहुजुयल ) તેને જોતાની સાથે જ માણુસા ધ્રૂજવા માગતા હતા તેનુ વક્ષસ્થળ ખૂબજ પહેાળુ હતુ અનેક જાતના રગોના પહેરેલા વાઘના ચામડાના અમા વાઘના આખા નખા, રુવાટા, મા આખે અને કાન સ્પષ્ટ રીતે દેખાઇ રહ્યા હતા ઉચા કરેલા ખ ને હાથમા તેણે લેહીથી ખરડાયેલુ લાખુ હાથીનુ ચામડુ પહેરેલું હતુ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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