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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ८ अङ्गराजचरिते तालपिशाचवर्णनम् ३४५ प्ठुरखरपरुपशुपिराधमुग्ननासिकापुटम् रोपात् क्रोधादिवागत प्रबलतया धमधमा यमानः धमधमेतिशब्द कुर्वन् मारुतो वायुनिष्ठुरस्तीतः खरपरुपा अतिकशा पर मदु'सहः, शुपिरयो अन्ध्रयोर्यस्य तत्तथा, तदेव भूतम्-अवभुग्न-चक्र नासिकापुट यस्य तथा तम् भस्त्रावद्धमवमायमानधासोच्छ्वासपूर्णवक्रनासिकायुक्तमित्यर्थः घाडु. भडरइयभीमणमुह ' पाटोद्भटरचितभीपणमुख-तत्र घाटाभ्या शिरोऽवयवविशेषा भ्याम् उद्भट विकराल दुर्दर्श रचितम् अतएव भीषण भयकर, मुख यस्य स तथा त विकृतभयानकमुखयुक्तम् ' उद्धमुहकन्नसक्कुलिय' अर्ध्वमुखकर्णशष्कुलीकम् ऊर्ध्वमुखे वर्णशष्कुल्यौ वर्णपुटौ यस्य स तम् । तथा-'महतविगयलोमसखालग्गलय तचलियफन्न ' महाविकृतलोमशहालग्नलम्बमानचलितकर्णम् , महान्ति विकतानि असुदराणि लोमानि ययोस्तौ महाविकृतलोमानौ, तथा-तौ च शङ्खालग्नौ-शङ्ख = अक्षिप्रान्तभागस्तगालग्नोसलग्नी सस्पर्शिनी लम्बमानौ च चलितौ चञ्चलौ च कों यस्य स तथा तम् , 'पिंगलदिप्पतलीयण' पिङ्गलदीप्यमानलोचन-पिङ्गले कपिले, था वह ऐसा मालम देता था कि मानो बडे क्रोध से आ रहा है और इसी लिये वायु भरते समय भस्वा (धमनी) से जैसा धम २ शन्द होते हैं उसी प्रकार का उस से भी धम बम ऐसा शब्द होता रहता था। वह तीव्र या अतिकर्कश या कठोर था। दुःसह था। उस का मुख शिर के अवयव विशेषों ने ऐसा ही दुर्दर्श बनाया था कि जिस से वह बड़ा भयकर लगता था। (उद्धमुहकन्नसक्कुलिय ) इम के दोनो कर्णपुट ऊँचे उठे हुए थे। ( महतविगयलोमसखोलग्गलबतचलियकन्न ) इन दोनो कानों के रोम इस के महा विकराल थे शख अक्षि प्रान्त भाग तक ये दोनों कान फैले हुए थे । इसीलिये ये पड़े लवे थे और चचल थे। નીકળતો હતો તે એમ જણાતો હતું કે જાણે બહુ કોધમાં ભરાઈને તે સામે ઘી આવતું હોય, એથી જ જ્યારે તે શ્વાસ લેતે હતા ત્યારે ભા (ધમણ) માથી જેમ “ધમ ઘમ શ થતો રહે છે તે જ ધ્વનિ થયા હતો તે તીવ્ર, કર્ક કઠેર અને હુ સહ હતું તેના મના કદ રૂપ અવયવથી તે દુર્દર્શ અને મહા ભયકર લાગતું હતું (उद्धमुहकन्नसकुलिय) तेनी ५२ त२५नी अनपटी 62 पसेही ती (महतधिगयलोमससालग्गल यतचलियपन्न ) २ ४ान ५२ना सवारी भावि રાળ હતા આખના ખૂણાઓ સુધી તેના અને કાન ફેલાયેલા હતા એટલા માટે જ એઓ લાંબા અને ચચળ હતા - On
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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