SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३८ हाताधर्मवणागण्डदेश भविष्टौ वदने गष्टदेशी कपोलमागौं यस्य तत्तया, 'चीणचिपिटनासिर्य' चीनचिपिटनासिक, चीना-स्था चिपिटा च नासिका यम्य तत्तया, 'विगय भुग्गभग्गभुमय ' विकृतभुग्नमग्नध्रुवम् विकृते सविकारे भुग्ने भन्ने अतीपत्रके भुवौ यस्य तद तथा, खजोयगदिशचपरसुराग' सघोतकदीप्तचक्षुराग, खद्योतक वदीप्यारागो लोचनरत न यस्य तत्तया, उत्तासणग' त्रासनक भयानक विशा लवक्षस्क-विस्तीरः स्थल, विशालकुक्षि-विस्तीर्णोदरम् , प्ररम्पकुति-दीर्घोदरम् , ' पहसियपयलिय पयडियगत 'प्रहसितप्रचरितमपतितगात्रम् । प्रहसितानि पविकासितानि प्रचलितानि-प्रकम्पितानि मपतितानि मर्पण थीभूतानि गा त्राणि यस्य तत्तथा, पणचमाण ' प्रनृत्यत् 'अफोडत' आस्फोटयत्, अभिवयत' अभिवजत् , ' अभिगज्जत ' अभिगर्जत् , बहुसो ' अट्टहासे विणिम्मुयत ' बहु निकल रहे थे । दोनों कपोल इसके मुख के भीतर घुसे हुए थे-अर्थात् दोनो गाल इस के पिच के हुए थे। नाक इस की छोटी और चपटी थी । इस की दोनों भौहें विकृत भुग्न और भग्न थी। अथवा भुग्न भग्न थी अत्यन्त चक्र थी-(खज्जोयगदित्तचक्खुराग, उत्तासणग विसालवच्छ, विसालकुच्छि पलबकुच्छि पहसियपयालिय, पयडियगत्त) इस की ऑखों की ललाई खद्योत (आग्या ) के समान दीप्त थी, उरस्थल (छाती ) इस का भयोत्पादक था, पेट विस्तीर्ण और लया था। शरीर इस का प्रहसित प्रचलित एव श्लथी भूत ढीला था । यह उस समय, (पणच्चमाण अप्फोडत, अभि वयत अभिगज्जत, बहुसो २ अट्टहासे विणिम्मुयत) नृत्य कर रहा था। अपनी दोनो भुजाओं का आस्फालन (बजाता) कर रहा था। ऐसा ज्ञात होता था कि मानों गर्जना करता हुआ समक्ष (सामने) ही તેનું નાક નાનુ અને ચપટું હતું તેની ખને ભમ્મરો વિકૃત ખડબચડી અને ભગ્ન હતી અથવા ભુનભગ્ન અને વકે–ત્રાસી–હતી (खज्जोयगदित्तचक्खुराग उत्तासणग विसालवच्छ, विसालकुन्छि पलब कुच्छि, पहसिय पयालिय, पयडियगत्त) તેની આખોની રતાશ આગિયા જેવી ચમકતી હતી તેનું વક્ષસ્થળ ભયકર હતુ પેટ વિશાળ અને લાબું હતું તેનું શરીર પ્રહસિત, પ્રચલિત અને શલથી ભૂત એટલે કે લબડી ગયેલું હતું ત્યારે (पणचमाण अप्फोडत अभिवयत, अभिगज्जत, बहसो २ अट्टहासे त्रिणिम्मुयत) તે નાચી રહ્યો હતોપિતાના બને ભુજાઓનું તે આસ્ફાલન (અફળાવવું)
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy