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________________ -- - अनगारधर्मामृतवपिणी टीका अ०८ अङ्गराजचरिते तालपिशाचवर्णनम् ३३७ विद्युद्विद्योतन पुनः पुनर्देवनृत्यप्रदर्शनपूर्वकमेक बृहत् पिशाचरूप विलोकयन्ति । स्मेत्यर्थः । कथम्भूत तत् पिशाचरूपमित्याह- तालजय ' तालजय तालक्षवदीर्घे जघे यस्य तत्तथा, दिव गताभ्या गगनस्पर्शिम्या वाहुभ्या महादीर्घाभ्यां पाहुभ्या युक्तमित्यर्थः। मपीमशकमहिपकालक मपी-कज्जल मृपको महिपश्च प्रसिद्धः तद्वत् कालक कृष्णवर्ण यत्तत्तथा, भरियमेहबन्न ' भृतमेघवर्ण = जलपूर्णघनीभूतमेघवटावदतिश्याम, लम्बोप्ठ, निर्गतापदन्त निर्गतानि मुखाबहिर्भूतानि अग्राणि अग्रभागा येपा ते निर्गताग्रास्तथा भूतादन्ता यस्य तथोक्तस्त, 'निल्ला लियजमलजुयलजीह ' निर्लालितयमलयुगलजिहम् निर्लालित - मुखावहिष्कृत यमल=सम युगल द्वय जियो येन तत्तथा, 'आऊसियवयणगडदेस' प्रविष्टबदनलगी, बिजली चमक ने लगी, और मेघ की गभीर ध्वनि भी होने लगी। बार २ आकाश में देवता नाचते हुए दिखलाई पडने लगे। तथा विशाल काय पिशाच का रूप भी दृष्टिगोचर होने लगा। (तालजघ दिध गयाहिं बाहाहिं मसिमसग महिसकालग) इस पिशाच की दोनों जघाएँ तालवृक्ष के समान दीर्घ थी। दोनों याहु मानो आका ा को छते थे। कज्जल, मूपक, और महिप के समान इस का वर्ण काला था । ( भरियमेवन्न, लबोंढ निग्गयग्गदत निल्ललिय जमलजुय लजीह, आऊसिय वयणगडदेस, चीण चिपिटनासिय विगय भुग्गभग्ग भुमय ) जल से भरी हुई घनी भूत मेघघटा की तरह इस का शरीर अत्यत कालाथा । ओष्ट बडे लवे थे। आगे के दाँत बाहर निकले हुए थे। इस की जिह्वा के दोनो अग्र भाग एक ही साथ मुख से बाहिर તેમજ વિશાળ શરીરવાળા પિશાચનુરૂપ ૫, જેવામાં આવવા લાગ્યું (तालज घ दिव गयाहिं बाहाहि मासिमूसग महिकालग ) पिशायनी भने સાથળે તાલવૃક્ષની જેમ લાબી હતી અને હાથ જાણે આકાશને સ્પર્શતા હાય મેરા, ઉંદર અને પાડાના જે તેને ૨ગ કાળે હતો (भरियमेहवन्न, ल्वोट निग्गयग्गदत निल्ललियजमलजुयलजीह, आऊ सियवयणगडदेस, चीणचिपिटनासिय विगयभुग्गभग्गभुभय) પાણીથી ભરેલી સાન્દ્ર મેઘ ઘટાઓની જેમ તેનું શરીર ઘણુ કાળુ હતુ હઠ ઘણા લાંબા અને નીચે લબડતા હતા આગળના દાત બહાર નીકળી ગયેલા હતા તેની જીભના આગળના બંને ટેરવા એકી સાથે માથી બહાર નીકળી રહ્યા હતા તેના અને ગાલ મોમા બેસી ગયેલા હતા - शा० ४३
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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