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________________ - ३३४ माताधर्मकथा सभृतान्तराला, पूर्णमुखीं यधोचितसभृताग्रभागा न्यनेभ्यः तीरस्थशानदरज्जु बन्धनन्धिमुन्मुन्य मुश्चन्ति=रिसर्जयन्ति । मु०१९ ॥ मूलम्-तएणं सा नावा विमुक्कबंधणा पवणवलसमाहया उस्सियसिया विततपक्खा इव गरुडजुबई गगासलिलतिक्खि सोयवेगेहिं सखुव्भमाणी२ उम्मीतरंगमालासहस्साइं समइ. च्छमाणी २ कइवएहि अहोरत्तेहि लवणसमुद अणेगाइ जोयण सयाइ ओगाढा, तएण तेसिं अरहन्नगपामोक्खाणं संजाताना वावाणियगाणं लवणसमुद्द अणेगाइ जोयणसयाई ओगाढाण समाणाण चहूइ उप्पाइयसयाइ पाउन्भूयाइ, त जहा-अकाले गजिए अकाले विज्जुए अकाले थणियसबे, अभिक्खणं आगासे देवयाओ नञ्चति, एग च ण महं पिसायरूव पासति, तालजंधं दिवंगयाहि वाहाहि मसिमूसगमहिसकालग भरियमेहवन्न लंबोट्ठ निग्गयग्गदत निल्लालियजमलजुयलजीह आऊसिय वयणगडदेस चीणचिविटनासिय विगयभुग्गभुमय खज्जोयगदित्तचक्खुरागउत्तासणगं विसालवच्छ विसालकुच्छि पलवकुच्छि पहसियपयलियपयीडयगत पणच्चमाणं अप्फोडत अभिवयत अभिगज्जत बहुसो २ अट्टहासे विणिम्मुयत नीलुप्पलगवलभरा हुआ था तथा अग्रभाग भी जिस का यथोचित अनेक प्रकार की सचालन सामग्री से व्याप्त हो रहा था तीर पर की कील मे बंधी हुई रस्सी के वधन को खोलकर छोड दिया। सूत्र" १९" ' હતી અને અગ્રભાગમાં યાચિત જાતજાતની સચાલન સામગ્રી ભરેલી હતી એવા વહાણને કિનારા ઉપર ના થાભલાનુ બ ધન ખોલીને મુક્ત કરવામાં नायु , " सूत्र "२०७॥ , मायु
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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