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________________ tantrधर्मामृतपणी टीका अ० ८ कोसाधिपतिस्वरूपनिरूपणम् #12 विदेहरायवरकन्नगा सुपइट्टिय कुम्मुन्नयचारुचरणा बन्नओ, तएणं पडिबुद्धी सुबुद्धिस्त अमच्चस्त अंतिए एयमहं सोच्चा णिसम्म सिरिदामगंडजणितहासे दूय सदावेइ, सद्दावित्ता एवं बयासी - गच्छाहि णं तुम देवाणुप्पिया । मिहिलं रायहणि तत्थ णं कुभगस्स रन्नो धूयं पभावईए देवीए अत्तयं मल्लि विदेहवररायकण्णग मन भारियन्ताए वरेहि जतिविय णं सा सयं रज्जं सुक्का, तणं से दूए पडिबुद्धिणा रन्ना एवं वुत्ते समाणे हड० पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव वाउग्घदे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंट आसरहं पडिक पावेइ, पडिक पावित्ता दुरुढे जाव हयगय महयाभडचडगरेण साएयाओ णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव विदेहजणवए जेणेव मिहिला रायहाणी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ सू०१८॥ टीका:- ततस्तदनन्तर खलु प्रतिबुद्धिः प्रतिबुद्धिनामको राजा स्नातो मुकुटालङ्कारवस्त्र विभूषित' हस्तिस्स्न्धवरगतः सकोरण्टमल्लदामेण सको रण्टमाल्यदाम्ना कोरण्टाख्य पुष्पतनक्वन्ति माल्यदामानि पुष्पजस्तैः सहितेन छत्रेण त्रियमाणेन यावत् श्वेतनरचामरैरुद्वोजितैश्च सहित', हयगजरथयोधमहा'तरण पडिबुद्धी पहाए' इत्यादि । टीकार्थ - (तरण) इसके बाद (पडिबुद्धी) प्रतिबुद्धि राजाने ( व्हाए ) स्नान किया बाद मे वे मुकुट आदि अलकारों से और राजसी वस्त्रों से अलकृत होकर (हत्विग्वधवरगए ) अपने पह हाथी पर बैठ गये( स कोरट जाब सेयवरचामराहिं० हयगयरह जोहमया भर 6 " तरण पडिवुद्धिदाए' त्यादि टीजर्थ - (तरण ) त्यारणाह (पडिबुद्धि) अतिमुद्धि रामसे ( व्हाए) स्नान રાજની વઓથી અલ કૃત થઈને पर सवार थया हयगयरह जोह महया भडचडकरेहिं કર્યું અને મુકુટ વગેરે આભૂષા તેમજ ( हव्यख धारगार ) पोताना पास हाथी ( सोरट जाव सेयर चामराहिं० साकेयनयर० निग्गच्छा )
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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