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________________ -- - - ३१० साताधर्मकथा हतिस्म । ततः खलु सा पमारती देशी निजपरिवारसपरिवृता सख्यादिपरि वारेण युक्ता साकेवनगर मपमध्येन निर्याति-निर्गन्छति । निर्याय-निर्गत्य यत्रैव पुष्करणी कमलयुक्ता पापी वर्तते तत्रोपागति , उपागत्य पुष्करणीमर गाहतेप्रविशति । अगा जलमजन यावत्-रमान सत्ता परमचिभूता 'उल्लपइसाडिया' आर्द्रपटशाटिका, साईपरिधानीयवस्त्रा यानि तस्या पुष्परिण्यामुत्य लानि यावत्पद्मादीनि तानि गृहाति गृहीत्वा यत्र नागदह वर्तते तत्रैव प्रधारयति मवर्तते गमनाय । ततस्तदनन्तर सल्लु पद्मावत्या दासवेढयो वयः पुष्यपटल. कहस्तगताः हस्तपरिधृतपुप्पफरण्डकाः धृपाइन्रुकहस्तगता-पाधारपात्राणि उस धार्मिक यान पर रय पर आरूढ हो गई । (तएण सा पउमावई देवी नियगपरिवाल सपरिघुडा सागेय नयर मज्झ मज्झे ण णिज्जाइ णिज्जित्ता जेणेव पुस्खरणी तेणेव उवागच्छइ ) इस के पाद पद्मावती देवी अपने परिवार से घिरी हुई होकर उस साकेत नगर के ठीक बीचों पीच के मार्ग से होकर निकरी-निकल कर वह जहा कमलों से युक्त घापी थी-वहाँ पर आई-(उवागच्छित्ता पुक्खरणिं ओगाहइ) आकर उस ने उस पुष्करिणी में प्रवेश किया - (ओगाहित्ता जल मजणं जाव परमसुइभूया उरल पउ साडिया जाड तत्थ उप्पलाइ जाव गेण्ड) प्रवेश कर जल स्नान किया याचत परम शची भूत बनी हुई उस ने गीली साड़ी पहि ने ही पुष्करिणी से कमल चुन लिये (गिण्डित्ता जेणे घ नागघरए तेणेव पहारेत्थ गमणाए) चुन कर फिर वह जा नाग घर था उस आर चल दी-(तएण पउमावईए दासचेडीओ बहओ ( तएण सा पउमावईदेवी नियग परिवालसपरिवुडा सागेय नयर मज्म मज्झेण णिज्जाइ णिज्जिता जेणेव पुक्खरगी तेणेव उवागच्छइ) - ત્યાર બાદ પદ્માવતી દેવી પિતાના સંપૂર્ણ પરિવારની સાથે સાકેત નગ રીની બરાબર મધ્યમાર્ગમા થઈને પસાર થઈ અને જ્યાં કમળ યુક્ત વાવ ती त्या पडायी ( उघागरिता पुखरणि ओगाहर) त्या पायान त પુષ્કરિણું (કમળવાવ) મા ઉતરી ओगाहित्ता जलमग्नण जाव परमसुइभूया उल्ल पउसाडिया जाइ तत्थ उप्पलाइ जाव गेह) ઉતરીને તેણે પાણીમાં સ્નાન કર્યું યાવત તે પરમ પવિત્ર થઈને તેણે भाना सुमाथी पुरिएमाथी भजी यूपया (गोण्हित्ता जेणेव नागधरए तेणेव पहारेत्थ गमणाए) यूटयामा पावती देवी च्या ५२ तु ते त२६ गई
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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