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________________ अनगारधर्मामृनवर्पिणी टीका अ० ८ कोसलाधिपतिस्वरूपनिरूपणम् ३०७ लम्ब्य पद्मावती देवी 'पडिवालेमाणा ' प्रतिपालयन्त २ प्रतीक्षमाणाः प्रती क्षमाणास्तिष्ठत । ततस्तदनन्तर खलु ते कौटुम्विका कौटुम्पिकपुरुपा यावत्यथापमानत्यासमादिष्ट तथा कृत्वा पद्मावतीदेवी प्रतीक्षमाणास्तिष्ठन्तिस्मा।मू०१६॥ मूलम्-तएणं सा पउमावई देवी कल्ल. कोडुविए एव वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया । सागेयं नगर सभितर वाहिरियं आसित्त समजिओवलित्त जाव पच्चप्पिणंति तएणं सा पउमावई देवी दोच्चपि कोडुविय० खिप्पामेव लहुकरणजुत्त० जाव जुत्तामेव उवटवेह, तएण तेऽवि तहेव उवटावेति । तएणं सा पउमाई देवी अंतो अते उरसिण्हाया जाव धम्मियं जाण दुरूढा, तएण सा पउमावई देवी नियगपरिवाल सपरिवुडा सागेय नगरमज्झमझेणं णिज्जाइ, णिजित्ता जेणेव पुक्खरणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुक्खरणि ओगाहइ, ओगाहित्ता जलमजणं जाव परमसूइ भूया उल्लपडसाडियाजाइ काण्ड-पुष्पो का गजरा-कि जिस से नासिका इन्द्रिय को तृप्ति कारक गय निकल रही हो को लटकावे । लटका कर फिर मुझ-पद्मावती की वहा प्रतीक्षा करते हुए बैठे रहे। इस प्रकार उन कौटुम्पिकपुम्पों से पद्मावती देवी ने ऐसा कहा-पद्मावती देवी के इस कथनानुसार सय ही काम उन कौटुम्यिक पुरुषों ने किया अर्थात् मालियो को बुलाया और उन से इस पूर्वोक्त प्रकार के पुष्प मडप की रचना करने को कहा-उन्हों ने सर कार्य व्यवस्थित ढग से कर दिया और पद्मावती देवी की प्रतीक्षा करते हुए वे सब वहा ठहरे रहे। सूत्र"१५" લટકાવીને મારી–પદ્માવતી દેવીની બધા ત્યા પ્રતીક્ષા કરતા રોકાય આ પ્રમાણે પદ્માવતી દેવીએ કૌટુંબિક પુરુષને નાગમહોત્સવ વિષે સૂચન આપ્યા પદ્માવતી દેવીના આદેશ મુજબ કૌટુંબિક પુએ માળીઓને બોલાવ્યા અને બોલાવીને તેમને યથાયોગ્ય પુષ્પમડપ બનાવવાની આજ્ઞા આપી આ પ્રમાણે બધુ કામ વ્યવસ્થિત રીતે પતાવીને પદ્માવતી દેવીની રાહ જોતા તેઓ त्या ३१॥ ॥ भूत्र “ १५"॥
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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